कोई हमसे मोहबत इस तरह कर गया,
जिस्म को रूह से यु ज़ुदा कर गया।
चाह कर भी मैं उसको भुला न सका,
मुझको मेरी ही सांसो से दूर कर गया।
हमको दीवान वो इस तरह कर गया,
हमको खुद के ही काबू से दूर कर गया।
बाप माँ की भी बाते मैं सुन न सका,
इस तरह वो ज़हन में घर कर गया ।
हमको टुकड़ो में वो इस तरह कर गया,
न तो चुप रह सके न मुखर कर गया।
चाह कर भी मैं उसको बता न सका,
अपनी यादों को वो मेरे संग कर गया।
कवि
प्रमोद दुबे
सुन्दर अभिव्यक्ति …………!!