कद छोटा, बढ़ाने की ख्वाहिश,
करता बढ़ने की आजमाइश,
माँ के रूप में पड़ोसन आई,
खाने को दी बढ़ने की दवाई,
कद बढ़ने का अर्थ खो गया,
पेट में भयंकर दर्द हो गया,
चीखते-चीखते ख़ामोशी छाई,
जीवन की आखिरी नींद आई,
जाने से पहले इतना बताया,
पड़ोसन आंटी ने दवा खिलाया,
बच्चे में कोई दुर्भावना न थी,
पड़ोसन में माँ की भावना न थी,
छोटी बात का था यह झगड़ा,
फिर यह कैसा हो गया रगड़ा,
ममता का यह क्रूर स्वरुप,
जैसे किसी दानवी का रूप,
छल से बच्चे को मार दिया,
ममता की गोद उजाड़ दिया,
ऐसी नारी को धित्कार…….
ममता में क्रूरता नहीं स्वीकार ।
विजय कुमार सिंह
vijaykumarsinghblog.wordpress.com
विजय मैं आप से सहमत हूँ
आपकी सहमति अत्यन्त आवश्यक है ऐसे मुद्दों पर. अच्छा होता ज्यादा से ज्यादा लोग ऐसी बातों पर सहमति दिखाते और ऐसी घटनाओं का विरोध करते. साथ के लिए ह्रदय से आभार.
बहुत सही कहा आपने….
आपकी सराहना के लिए ह्रदय से आभार.
आप का विमर्श नारी के एक अलग स्वरूप की कटु व्याख्या करता है। शायद ऐसे अवसरों पर नारी यह भूल जाती है कि वो जननी भी है…..
अच्छी रचना जो हमे सोचने के नए कोण देती है।……विजय जी को बधाई..
अरुण जी को बहुत-बहुत धन्यवाद.
नफरत इंसान से कुछ भी करा देती है …………………. अच्छी रचना विजय जी !!
आपका कथन बिलकुल सत्य है सर………..बहुत-बहुत धन्यवाद.
आप की भावना से मैं सहमत हूँ विजय जी !
आपकी सहमति के लिए ह्रदय से आभार.
vijay ji bahut sahi likha aapne
इस मामले पर आपकी सहमति अत्यन्त आवश्यक है.
खूबसूरत रचनात्मक के लिए बस एक ही शब कहूंगा विजय ……………उम्दा !!
आपकी सराहना के लिए ह्रदय से आभार.
अति सुन्दर रचना…………………………………………विजय जी !!
बहुत-बहुत धन्यवाद अभिषेक जी !!
बदले की भावना इस बात का प्रमाण दे रही है की माँ की ममता जैसे पवित्र भाव को भी अशुद्ध कर देती है
बहुत अच्छा लिखा है आपने
आपकी सराहना के लिए ह्रदय से आभार.