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महेंद्र सिंह किरौला पुत्र श्री कुंवर सिंह किरौला एवं स्वर्गीय श्रीमती अनुली देवी किरौला का जन्म ७ फरबरी सन १९८५ को दिल्ली महानगर के पालम मे हुआ था.
४ वर्ष की उम्र मे ही दिल्ली शहर छोड़कर वह उत्तराखंड के जिला अल्मोड़ा के एक छोटे से कसबे मे अपने परिवार के साथ पलायन हुआ, जैसे कि साहित्य प्रेम की नियति अपना निर्माण खुद ही कर रही हो. जनता इंटर कालेज गुमटी, मे अपनी शिक्षा ग्रहण करते हुए, हिंदी मे बाल्यावस्था से ही बहुत रूचि रखने वाले बालक के जीवन मे आशा कि किरण २० अक्टूबर सन १९९९ को जगी, जब कि उसने पहली कविता (स्वप्न : साहित्य प्रेम का बीज) लिखी, और बर्ष २००० मे वाद-विवाद प्रतियोगिता मे जिला अल्मोड़ा मे स्वर्ण पदक का सम्मान प्राप्त किया. और कई प्रितियोगिताओ मे भाग लेकर अपने मनोबल को बढ़ाया एवं कई बाल कविताये लिखी, विज्ञानं बर्ग मे होने के बावजूद हिंदी से अत्यधिक प्रेम उसे अपनी और आकर्षित करता रहा, खेद ! जीवन के कठिन वैकल्पिक और संकरे रास्ते ने कुछ वर्षो तक फिर उसका ;प्रेम छीन लिया. मगर एक फिर चमत्कार हुआ और फिर आज अपनी कई रचनाओ के साथ महेंद्र उत्तरी अमेरिका मे समय का सदुपयोग साहित्य कि सेवा मे कर रहा है हालाँकि व्यवसाय से वो एक अंतर्राष्ट्रीय कंपनी मे जनरल मैनेजर के पद पर कार्यरत है.
महेंद्र ने अपने ब्यवसाय मे भी कई योगदान दिए है, जैसे कि उन्हें मास्टर मिक्सोलॉजिस्ट, बारटेंडर ऑफ़ दी ईयर, परफेक्ट व्हिस्की टेस्टर एवं डायनामिक मेनू इंजीनियर का ख़िताब मिला है, समस्त हिंदुस्तान मे प्रेस ट्रस्ट से प्रकाशित कई रेसिपीज उनकी है. बतौर कंसलटेंट के उन्होंने कुछ शहरो मे भी काम किया, भारत के अलावा यूनाइटेड अरब अमीरात, नार्थ अफ्रीका, उत्तरी अमेरिका,जॉर्डन मे भी अपना योगदान दिया है.
वो अल्मोड़ा कि शीतल समीर, प्रकृति के कई रंग और जीवन कि सरलता उसके झरोखे से रोज कह जाती है कि तुम्हारा जन्म रंग बिरंगे कागज जमा करने के लिए नहीं बल्कि अपने विचारो को आकृति देने के लिए हुआ है.
महेंद्र किरौला का मन अपार प्रेम, सहनशीलता, पवित्रता एवं निष्ठा से भरा हुआ सारे जगत को नतमस्तक करता है क्योकि ये उसी परमपिता कि संतान है जिनकी वह रोज मन से, तन से एवं बचन से प्रार्थना करता है.
मान्यता से जीवन का अस्तित्व बड़ा पावन और साकार हुआ है. अब जीवन एक ठहरे हुए जल पात्र की तरह हो गया है मगर गहराई अनंत है जिसमे कई मील अंदर आत्मा गोते खा रही है और जीवन की महत्वकांशा एक बिचित्र एवं सुन्दर छोर की तरफ करवट ले चुकी है, और अब निष्ठा और प्रेम सिर्फ साहित्य की देवी से है.
मेरे बचपन की याद ताजा हो गयी…….बेहतरीन composition!
ab dekhiye sriman..
इस रचना में अंत थोड़ा उद्देश्य पूर्ण होना चाहिए……! आप एक और अंतरा जोडकर अगर कुछ सार लिखने की कोशिश करें तो और बेहतर होंगा!
ji mitra,
hum isme ek saar jod dete hai .. sukriya..
बालपन कि निश्छल अनुभूतियो का ऋतुओ के माध्यम से मनलुभावन दृश्य प्रस्तुत किया है आपने ….अति सुंदर महेंद्र !!
thank you sir!!
A very nice poem representing the impartial feelings of childhood….
U have presented the whole picture of my childhood with ur beautiful lines……
thank you sriman
मनुजी…..कमाल है…..बस….
sukriya sir, aapke protsahan ke liye
Feelings of childhood….nice poem
sukriya kavibar, aapke protsahan ke liye
खूबसूरत रचना है……
thank you sir!!
वाह
अच्छी रचना
बालपन की कोमलता छिपाए……
sukriya mitra, aapke protsahan ke liye