एक और पुरानी रचना ………….. नए दोस्तों के लिए
आँखें बोलना चाहती हैं
उसकी आँखें देखी तो लगा कुछ बोलना चाहती हैं
इंतज़ार में कटे जो दिन राज़ खोलना चाहती हैं
उसकी आँखें देखी तो लगा कुछ बोलना चाहती हैं
बस कट ही गए काटे नहीं जाते थे वो दिन और रात
रह रह के याद आती थी उसकी प्यार भरी हर बात
ग़म की उन यादों से प्यार के पल टटोलना चाहती हैं
उसकी आँखें देखी तो लगा कुछ बोलना चाहती हैं
सामने आते ही छंट गया लम्बे इंतज़ार का अँधेरा
नज़रों से नज़र मिलते ही चमक उठा आफ़ताब सा चेहरा
चेहरे की उस रंगत में मोहब्बत की लाली घोलना चाहती हैं
उसकी आँखें देखी तो लगा कुछ बोलना चाहती हैं
दूरियां खत्म करके आज पास आने की घड़ी है
फिर भी शर्मों ह्या की इक दीवार सी खड़ी है
उन सब दीवारों को तोड़ कर मस्ती में ढोलना चाहती हैं
उसकी आँखें देखी तो लगा कुछ बोलना चाहती हैं
लेखकः – सर्वजीत सिंह
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Beautifully written sir…………………………….
Thank you very much for the appreciation Vijay Jee.
बहुत बढ़िया सर्वजीत जी ……….
बहुत बहुत धन्यवाद ………………. मनी !!
बेहतरीन रचना सर्वजीत जी !!
आपका बहुत बहुत आभार ……………………. निवातियाँ जी !!
बहुत ही उम्दा रचना है सर्वजीत जी!
अपनी तिजोरी से एक से बढ़कर एक हीरे निकाल रहे हैं।वाह….
उत्साह वर्दक प्रतिक्रिया के लिए बहुत बहुत आभार आपका ………………… अरुण जी !!
बेहतरीन…………..
बहुत बहुत धन्यवाद शर्मा जी !!
बेहतरीन रचना सर्वजीत जी l
राजीव जी बहुत बहुत आभार आपका !!
बहुत ही बढ़िया………..सर्वजीत जी !!
बहुत बहुत धन्यवाद ……………….. अभिषेक !!
पहली बार मैंने बाबू सर्वजीत भाई से चार पंक्तिओं से आगे की बेहद खुबसूरत रचना देखी, आपको कोटि कोटि धन्यवाद ऐसी मोहक अंदाज बयां करने वाली रचना के लिए!
बहुत बहुत आभार आपका ………………सुरेन्द्र जी !!
इससे पहले भी एक रचना प्रकाशित की थी – शर्मा जी का कुत्ता, जरा उस पर गौर कीजिए !!
Superb awesome Sir ji
Thank you very much for the appreciation Pandey Jee.