रोशनाई कागज़ की होती तो मिटा भी देते….
दिल पे लिखा है जो तुमने उसे मिटायें कैसे….
रुक रुक के तेरे क़दमों पे सजदा करते रहे हैं हम…
अब ये सर अपना कहीं और झुकाएं कैसे…
पूछते हैं लोग मुझसे जो मोहब्बत का हश्र …..
प्यार हुआ कैसे…मिटे कैसे…ये बताएं कैसे….
खौफ समंदर को भी है अपना जो कश्ती मेरी डूबने नहीं देता…
गर मैं डूबा तो मेरे जिगर की आग से खुद को बचाए कैसे….
ग़मगीन नहीं मैं…न सोगवार ही हूँ अपना….
जो था नहीं मेरा उसका शोक मनाएं कैसे….
दिल जलता है…जिस्म राख हुआ जाता है “बब्बू”…
नस नस से निकलते धुएं से खुद को बचाएँ कैसे….
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/सी.एम. शर्मा (बब्बू)
अति सुन्दर रचना. पसंदीदा पंक्ति……
पूछते हैं लोग मुझसे जो मोहब्बत का हश्र …..
प्यार हुआ कैसे…मिटे कैसे…ये बताएं कैसे….
बहुत बहुत आभार आपका…..
बहुत बढ़िया बब्बू जी के क्या कहने………अति सुन्दर रचना.
बहुत बहुत शुक्रिया…..आपका….
बब्बू जी बहुत खूबसूरत नज्म बन पड़ी है ……”.जिगर में बड़ी आग है” क्या कहने ………… माफ़ी चाहूंगा यदि अंतिम पद की अंतिम पंक्ति में भी काफ़िया मिला देते तो नज्म सुंदरता में चार चाँद लग जाते !!
मैं खुद इसको २-३ बार बदला पर ब्लॉक हो गया….आपके कहने से अक्ल आयी….नज़र कीजियेगा….आप का ह्रदय से बहुत बहुत आभार…..
बहुत बहुत धन्यवाद बब्बू जी …………….अति उत्तम !!
आप का आशीर्वाद है….तहदिल से आभार….
सुन्दर भावों से सजी गीति रचना !
मीनाजी…..तहदिल से आभार…..
बब्बू जी आपकी रचना दिल को छूती है , खूबसूरत रचना लिखी है अपने l
आप के दिल तक पहुंची……मेरा प्रयास को और बल मिला….बहुत बहुत आभार आप का…….
खुबसूरत रचना……….
बहुत बहुत शुक्रिया आपका……
waah kya baat hai…..
जी शुक्रिया आप का…..दिल से….
आपको भी लग गया इश्क़ का रोग, आप भी आ गए मोहब्बत के चक्कर में …………………………. बहुत ही बढ़िया शर्मा जी !!
हम तो आपकी लकीरों पे चल रहे हैं हुजूर……बहुत बहुत आभार…..
“खौफ समंदर को भी है अपना जो कश्ती मेरी डूबने नहीं देता…
गर मैं डूबा तो मेरे जिगर की आग से खुद को बचाए कैसे….”
You have gone so deep Babbu ji in above lines that I could not prevent myself from flagging the. Marvellous work.
आपके इतना कहने से “I could not prevent myself” भावविभोर हो गया….तहदिल से आभार…आपके आशीर्वाद रुपी वचनों का….
बेहतरीन …….सी एम शर्मा जी
बहुत बहुत आभार……
बहुत बढ़िया,,,
आप अपने इस हुनर को यूँ ही तराशते रहें।
वाह वाह वाह!
बहुत बहुत शुक्रिया…….
पढकर अच्छा लगा बहुत खूब
अनूपजी….बहुत बहुत आभार आपके पसंद करने का….
बाबु cm जी, सच कहु तो जब से मै आपकी रचना नजर कर रहा हूँ, यह रचना उन सभी रचनओं में कोहिनूर है,अगर वास्तव में बोलू तो यह रचना आपके अंदर छिपी गंभीर लेखन की ओर जाती प्रतीत हो रही है…….! भाई मुझे जलन भी हो रही है और खुशी भी…..कारण तो समझ ही गए होंगे!
सुरिंदरजी….आप के स्नेह भरे वचन दिल को छूते हैं….आप का तहदिल से आभार आपको रचना पसंद आयी…..मैंने इसी अंदाज़ में २ पहले लिखी हैं…एक उनमें ये लिंक दे रहा हूँ http://www.hindisahitya.org/70263 उसके बाद आप इससे पढियेगा http://www.hindisahitya.org/73761
आप के मन का संशय दूर होगा….हा हा हा….. पुनः बहुत बहुत आभार……