ट्रिन-ट्रिन, ट्रिन-ट्रिन, ट्रिन-ट्रिन, ट्रिन-ट्रिन,
घंटी बज रही फ़ोन की, एक बार तो गिन ।
कितने प्रयास करने पर तुमने उठाया फ़ोन,
अब पूछ रही हो बार-बार बोल रहा है कौन ?
देखो सारी दुनिया है योग करने में लीन,
तुम पड़ी हो बिस्तर पर, ले रही गहरी नींद ।
सिलवटें सहेज दो, आलस्य दूर भेज दो,
योग की आवश्यक बातें मन में समेट लो ।
मैं शीर्षासन पर पहुंचा तुम प्राणायाम कर लो,
नव प्रभात नव रश्मि को आँचल में भर लो ।
स्वास्थ्य रहेगा अच्छा तो दुनिया भी भाएगी,
मन की कोयलिया भी मधुर-मधुर गाएगी ।
नव ऊर्जा संचित कर फिर बात मुझसे करना,
बोल रहा है कौन इस उत्तर को भी भरना ।
हम अपनी संस्कृति में नव रस भर पाएंगे,
जैसे तुम्हे समझाया, दुनिया को समझाएंगे ।
https://vijaykumarsinghblog.wordpress.com
विजय कुमार सिंह
अति सुन्दर….विजय जी
पसंद के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद.
welldone…………….
पसंद के लिए धन्यवाद.
विजय समसामयिक रचना.
Thank you sir.
बहुत खूबसूरत निजय ……हास्य व्यंग के माध्यम से योग के द्वारा स्वस्थ जीवन के पारी जाग्रत करती खूबसूरत रचना !!
योग दिवस पर भी योग के प्रति जो लोग जागरूक नहीं हैं उनके ध्यानाकर्षण हेतु । पसंद के लिए धन्यवाद.
बहुत ही सुन्दर हास्य.. योग…. प्राणायाम का समावेश….कमाल है……मेरी सबसे प्यारी पंक्ति “मैं शीर्षासन पर पहुंचा तुम प्राणायाम कर लो”…..हा हा…..अत्यन्त सुन्दर…..
सर, गृहमंत्री के आगे शीर्षासन ही करना पड़ता है. पसंद के लिए बहुत-बहुत शुक्रिया.
बहुत अच्छी रचना है आपकी……….
पसंद के लिए ह्रदय से आभार.
बहुत बढ़िया …………….. विजय जी !!
सर, आपने पसंद किया ये बड़ी बात है. बहुत-बहुत धन्यवाद.
Nice Bahut hi Badhiya
Vijay JI
पसंद के लिए बहुत-बहुत शुक्रिया इन्दर जी.
बहुत बढ़िया विजय जी ………
पसंद के लिए ह्रदय से आभार.
विजय जी देर से प्रतिक्रिया के लिए क्षमा!
समसामायिक तात्कालिक प्रकरणो पर लिखना एक बेहतरीन कवि की एक अन्य खूबी भी होती है।
आपने इस विधा का परचम लहराया है वो भी पूरी शिद्दत के साथ। अभी बहुत कुछ सीखना है मुझे आप से।
यूँ ही नवीन भावो का पान कराते रहिये।
आप को हृदय से नमन!
पसंद के लिए ह्रदय से आभार.