“तू कर प्रहार!”
_अरुण कुमार तिवारी
है गर्म लहू को, ये पुकार!
‘तू कर प्रहार!’
‘तू कर प्रहार!’
मत निरख बह रहे मुर्दो की,
उठती क्रन्दन बिलखी पुकार|
पूछो मत बहती धारा से,
बढ़ते उफान की कुटिल मार|
कटते तट कटें ,कटें न रहें,
बढ़ती सरिता कर आर-पार!
तू कर प्रहार!
है गर्म लहू को,ये पुकार!
‘तू कर प्रहार!’
‘तू कर प्रहार!’
जो खड़े पंक्ति में सजे अश्व,
ये नहि तुरंग लड़ने वाले|
जब वीर भूमि में मिटते हैं,
रंगते वे लहू नहीं काले।
मत भीरु बनो रणबीच खड़े,
कर उठा धनुष दमके सवार!
तू कर प्रहार!
है गर्म लहू को,ये पुकार!
‘तू कर प्रहार!’
‘तू कर प्रहार!’
डरते नहि वीर वृथा किंचित,
जलते लावों का निरख ताप|
हो दग्ध अगर रण विजय मार्ग,
चलते पग उसपर आप आप|
है अंत नहीं वो पथ अनन्त,
ले वीरगती का सुयश द्वार!
तू कर प्रहार!
है गर्म लहू को,ये पुकार!
‘तू कर प्रहार!’
‘तू कर प्रहार!’
‘हम रहें नहीं पर देश रहे’
कह चले वतन के मतवाले।
रुक चली भले थमती साँसें,
पी चले अगिन अमृत हाले।
ये बात नहीं उकसाने की,
है शत्रु दमन की ये पुकार!
तू कर प्रहार!
है गर्म लहू ,को ये पुकार !
‘तू कर प्रहार!’
‘तू कर प्रहार!’
-‘अरुण’
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ओजपूर्ण भावाभिव्यक्ति…….., सुन्दर रचना !
धन्यवाद मीना जी!
वआह…..एक एक शब्द ने रोंगटे खड़े कर दिए मेरे…….प्रहार करके……..शब्द विहीन हूँ मैं आप की रचना की प्रशंसा के लिए……….वआह्ह्ह्ह्….
शब्दों को महसूस करना उसे व्यक्त करने से कठिन और बढ़कर है। आपकी विवेचन क्षमता और शब्दों की संवेदना को नमन!
उत्साहवर्धन से मेरे रोम कम्पित हो उठे………
धन्यवाद!!
बहुत बढ़िया लेखन…. अरुण जी के क्या कहने…………
धन्यवाद सर…………
आपकी रचना भी प्रसंसनीय है. एक बार “सैनिक” भी पढ़ें और अपने विचार दें.
आपको कोटिशः धन्यवाद। मैं जरूर पढ़ूँगा
उत्साह से परिपूर्ण लयबद्ध सारयुक्त शब्दों से सुसज्जित खूबसूरत रचना !!
अरुण जी आपकी सर्जनात्मकता बेहद उम्दा है …………यक़ीनन इसके लिए आप बधाई के पात्र है !
आपका बहुत बहुत धन्यवाद सर। इन् प्रोत्साहन के शब्दों से जरूर ऊर्जा मिलेगी।
बेहतरीन रचना अरुण जी. आपका कार्य अकादमिक स्टार का होता है. देश प्रेम व् वीरता को प्रेरित करती अति उत्तम रचना. निरख का अर्थ मैं देखना समजह रहा हूँ. कुछ और हो तो स्पष्ट करे.
आपका कोटिशः आभार!
निरख का सटीक और सही अर्थ आप समझ रहे हैं। यहाँ इसका आशय ध्यानपूर्वक अवलोकन से है।
आप बहुत अच्छा लिखते हैं……….सुंदर रचना….
आपको धन्यवाद अलका जी!
दुश्मन पर प्रहार करने के लिए लहू तो गर्म होना ही चाहिए ……………………… देश भक्ति और वीर जवानों को जोश दिलाने वाली आपकी अद्भुत रचना ………………………….. लाजवाब !!
आपने इस प्रकार का विमर्श लिख कर मुझे प्रोत्साहित किया है मैं आपका कोटिशःआभार व्यक्त कर रहा हूँ।