तुमने मुड़कर न देखा हभ आगे बढ़ गए
आंसुओं के मोती आँखों में समेटे
मन चाहा रोक लूँ तुम्हे पर हिम्म्त न हुई
पता ही नही चला कब बात इतनी बढ़ गयी
रोका क्यूँ न मुझे शब्दों के बाण छोड़ने से
जो तुम्हारे दिल को छन्नी करती हुई मुझतक पहुँच गयी
टूटा दिल
दर्द दौड़ गया नस नस तक
रोया होगा खुदा भी
आवाज पहुंची होगी फलक तक
क्या हभेशा से ऐसी ही थी
हमारी अधूरी मोहब्बत………..
guys m new here….. hope u all like my poem…..
मन के भावो को शब्द देने का खूबसूरत प्रयास ……अति सुन्दर !!
Very Nice Poem……………………. shrija Jee.
Nice…………….,
shrijaji……मैं भी नया हूँ…..बहुत ही कमाल के भाव उकेरे हैं आपने….बहुत ही सुन्दर….बहुत ही सुन्दर….
nice expression………………….
thanx everyone for ur complements… it motivates me to write more.