Homeगुलज़ारवो ख़त के पुरज़े उड़ा रहा था वो ख़त के पुरज़े उड़ा रहा था विनय कुमार गुलज़ार 14/03/2012 No Comments वो ख़त के पुरज़े उड़ा रहा था हवाओं का रुख़ दिखा रहा था कुछ और भी हो गया नुमायाँ मैं अपना लिखा मिटा रहा था उसी का इमान बदल गया है कभी जो मेरा ख़ुदा रहा था वो एक दिन एक अजनबी को मेरी कहानी सुना रहा था वो उम्र कम कर रहा था मेरी मैं साल अपने बढ़ा रहा था Tweet Pin It Related Posts साँस लेना भी कैसी आदत है मौत तू एक कविता है पेंटिंग-1 About The Author विनय कुमार Leave a Reply Cancel reply Save my name, email, and website in this browser for the next time I comment.