बहुत शिकायतें कर ली हम ने ,
अब समय कुछ करने का।
औरो में गलतियाँ देखने से पहले ,
अपने अंदर की कमियाँ देखने का।
अपना नज़रिया हम बदले ,
हंसना सीखे हंसाना सींखे।
निर्भर नहीं रहना अब,
अपना भी योगदान देना अब।
करोड़ों हाथ जब उठेंगे,
कोई न हमे रोक पाएगा,
भारत को श्रेष्ठ बनाने में
जब पूरा भारत जुट जाएगा
समय आगया अब,
खुद को बदलनेका।
अपना अपना योगदान देकर,
देश के काम आने का।
‘अनु माहेश्वरी ‘
चेन्नई
अनु जी उम्दा भावो के चयन के लिए बधाई!
एक निवेदन परन्तु अन्यथा न लें
शब्दों के तारतम्य पर थोडा और सजग रहने की जरूरत है।
मेरे निवेदन को आप अन्यथा न लीजियेगा। विद्वता का प्रदर्शन नहीं अपितु परिष्करण का प्रयास है।
तिवरी जी आपने सही कहा है. तुकबंदी पर ध्यान दिया जा य तो कविता बहुत अच्छा होता.
अनुजी….आपकी भावनाएं बहुत अच्छी है….तिवारी जी का सुझाव दिया बहुत बढ़िया है…शायद उन्होंने डिलीट कर दिया वो …..उनकी बात बहुत सही है…अपनी विद्वता प्रदर्शन नहीं अपितु एक दुसरे से सीखने का हम सबके पास ये माध्यम है….निश्चित रूप से आप अच्छा लिखती हैं….
बिलकुल सच्ची बात कही है आपने. अति सुंदर……………..