प्रिय करो सोलह श्रृंगार मुझे सरहद पर जाना है,
तेरी मांग के सिन्दूर से माँ का आँचल सजाना है । प्रिय करो…..।
तिलक लगाकर विदा करो, शंखनाद करो रण का,
गद्दार पडोसी के चंगुल से माँ का दामन छुड़ाना है। प्रिय करो…..।
माँ दुर्गे की शक्ति दे दो, काली की विकरालता,
दुश्मन कोई बच न पाये ऐसा कोहराम मचाना है । प्रिय करो…..।
इंतज़ार नहीं करना, न करना मेरे मरने का गम,
शहीदों के शवों पर तुम्हे रोना नहीं मुस्कुराना है । प्रिय करो…..।
चेहरे पर हो तेज तुम्हारे, भावना में हो बलिदान,
नई पीढ़ी में तुमको फिर ऐसा ही जोश जगाना है । प्रिय करो…..।
खुदीराम, राजगुरु या भगत सिंह नहीं मरते हैं,
मुझे भी तेरी माँग को अपने लहू से अमर बनाना है । प्रिय करो…..।
विजय कुमार सिंह
vijaykumarsinghblog.wordpress.com
बहुत ही बेहतरीन, उम्दा, देश-भक्ति से पूर्ण
पसंद करने के लिए आप सब का बहुत बहुत धन्यवाद.
अद्भुत देश प्रेम रचना. मेरा सुझाव है इस रचना को आरएसएस प्रमुख को भेंजे. वहां ऐसी रचनाओं को बहुत सम्मान मिलता है.
पसंद करने के लिए आप सब का बहुत बहुत धन्यवाद. आपकी सलाह के अनुसार मैंने ईमेल कर दिया है.
विजय जी उम्दा और लाजबाब प्रस्तुति!
पसंद करने के लिए आप सब का बहुत बहुत धन्यवाद.
देश प्रेम के भावना का से ओत प्रोत खूबसूरत रचना ……..क्या सुन्दर भाव प्रस्तुर किते है आपने अति सुंदर !!
निवातियाँ जी आप रचना के भावों को एक गम्भीर पारखी दृष्टि से देखते हैं. आपकी पसंद के लिए ह्रदय से आभार.
हाँ इतना जरूर कहना चाहूंगा की कविता के भावों को एक बार फिर जन-जन तक पहुँचाना जरुरी है. मेरा एक छोटा सा प्रयास भर है.
लाजवाब….बेहतरीन………
पसंद के लिए ह्रदय से आभार.
बहुत ही बढ़िया रचना आपकी ।
पसंद के लिए ह्रदय से आभार काजल जी.
बहुत ही उम्दा “Vijay JI”
पसंद के लिए ह्रदय से आभार.
बेहतरीन रचना………..
पसंद के लिए ह्रदय से आभार.
देशभक्ति की भावना से परिपूर्ण खूबसूरत रचना !
पसंद के लिए ह्रदय से आभार.