परदे में कुछ नहीं है अब परदा कहाॅ है भाई
जो परदो में था पहले वो अदा कहाॅ है भाई ।
दरवाजे में लटक गई अब हया कहाॅ है भाई
जमाना इसे गटक गई अब दया कहाॅ है भाई ।
नातों और रिष्तों के परदे सर से उठ गये हैं
कहाॅ रही वो संस्कृति जो घर से लुट गये हैं ।
देख न पाते चेहरा जिसका तरस खाते वोे वर्षो
लाज लेहाज सम्मान जिसका बीत रहा था अर्षो ।
मर्यादा भूल गये परदे की वो परदा कहाॅ है भाई
जो सम्हाल न पाया इसको वो कदा कहाॅ है भाई ।
जमाना बदल गया या कि लोग बदल गये हैं
कौन सी राह पर न जाने हम आज निकल गये हैं ।
हर नकाब के पीछे अब क्यों लगा है दूसरा चेहरा
रोती विलखती तड़पती क्यों दु ख भरा ये चेहरा ।
कम पडे़ क्या कपड़े तन के ठीक से नहीं जो ढ़कते
नज़रें तंग हुई क्यों जो दिल को नही सजते ।
बचा है सिर्फ छल छलावा अब परदा कहाॅ है भाई
खुल्लम खुल्ला सबकुछ वो रजा कहाॅ है भाई ।
बी पी षर्मा बिन्दु
Writer :- Bindeshwar Prasad Sharma (Bindu)
D/O Birth :- 10.10.1963
सही कहा आपने….बहुत खूब…….
Babbu jee aapka dil se sukriya, aap sab ka sahara pakar hi main apni rachnayein bhej paunga, kyorki maine 2004-2005 main apni nowel mumbai chhatra morcha meain bheja tha jo kya hua malum nahi. isliye main barso barsh kanhi kuchh bhi nahi bheja. aage prabhu ki ixchha.
Thank you.
समय के वर्तमान रूप का बखूबी चित्रण. बहुत खूब.
बेहतरीन बिंदु जी
बदलते परिवेश में विलुप्त होती संवेदनाओ पर सुन्दर अभिव्यक्ति …………!!
Bijay jee , very very thanks.
mani jee apko meri raraf se dher sari khushian mile dhanyabad.
Niwatian jee aap hame guide line dete rahiye to meri haushla aur buland hugi. dhanyabad sir,