यादो का गुलदस्ता लेकर , आई थी कल रात परी
जादू सी थी आवाज उसकी , और बातो में थी मिस्री
देख के उसको, मन का पंछी पंख फैलाए उड़ चला
रोके टोकें न उसको कोई , वह बिसरि यादो में चला
उड़ कर मन की गहराई से , पंछी पहुंच गया उस घर
जहां शुरू हुआ इस लम्बे जीवन का छोटा सा सफर
बड़े जतन करके , नखरों को जिसने झेला था …..
उस घर में माँ-पा के संग, बहना भैया का भी मेला था
ज़रा घूम कर , ज़रा झूम कर , बीते दिन को जीत जीत कर
मन का पंछी बढ़ा आगे , मीठे मीठे सपनो के उड़ते आँचल को थामे……
उड़ कर मन की गहराई से , पंछी पहुंच गया उस दर
जहां किताबो से जुड़ कर सोच रहा क्योंआखिर में आया इधर
बचते बचाते , डांट और फटकार की लम्बी कतारों से……..
दोस्तों और दोस्ती की यादो के संग हर पल ………
मुस्कुराकर किया पूरा जीवन का ये वाला चक्कर …..
जीत हार की बेड़ी को तोड़ , दोस्ती का दामन थामे
मन का पंछी बढ़ा आगे जीवन पथ पे बढ़ते सपनो को पाने
उड़ कर पंछी पहुंच गया , संघर्ष भरी लम्बी राहो पर ,…….
तोड़ के पिंजरा जीवन का , पैसो की बनी पनहो पर
क्या खोया और क्या पाया , अंजान हुआ पंछी आगे …
अपना क्या और क्या मेरा सब भूल गया बस भागे ही भागे ..
थोड़ा सा घबराकर पंछी , पग पथ पे डामाडोल हुआ ..
हार गया इस जीवन को , थक कर चूर चूर हुआ
बस जल्दी से दूर चलो , इस वाले जीवन मेले से
मुझे नहीं बढ़ना आगे , क्यों न हम संग संग खेले
पंछी उड़ कर चला गया , बीते दिन की रातों में
नींद खुली मेरी अब, ऐसे बुरे हालातो में ……….
काश परी यहीं रहे …मेरे गहरे जज्बातो में
और मन का पंछी बढ़ता चले किन्ही भी हालातो में ……….
आपने अपनी रचना में व्यक्ति के मन की उड़ान को दर्शाया है. अच्छी रचना.
thanks vijay ji sukriya
बहुत बढ़िया रचना तमन्ना जी…….
thanks mani ji …ye hum sabh ke man ki udaan hai
वआह…..क्या बात है….वर्तमान में जब भी कभी हम कहीं उलझते हैं…यादों के झरोखों से हम अपने को सम्भालते हैं….यादों के संयोजन का सुन्दर सफर….बहुत खूब…..
thanks ji , sukriya , shukriya
स्वपन के माद्यम से जीवन धारा के प्रत्येक पहलु पर प्रकाश डालने का खूबसूरत प्रयास !!
तमन्ना जी गुस्ताखी माफ़, पर इस रचना के जितने अच्छे भाव और विषय है, उतनी अच्छी अलंकारिक प्रकृति उभर कर नहीं आई है। आप थोड़ी गहराई से देखिये और शब्दों के उचित संयोजन के साथ थोड़ा सुधार करिए…….रचना में चार चाँद लग जायेगा!