गजल
हम तुम्हें देखते रह गये रात भर
तेरा चेहरा ही समझते रहे रात भर ।
हम तो तन्हा तें करवट बदलते रहे
ख्वाब में संवरते रह गये रात भर ।
जिसको छुआ नहीं रूह तक आ गई
दिल मेरा धड़कते रह गये रात भर ।
बे इंतिहां मुहब्बत की क्या बात है
आॅख मेरे ही ठगते रह गये रात भर ।
सवेरा हुआ तब मैं उठ भी गया
क्या क्या देखते रह गये रात भर ।
ये रिष्ता नहीं रस है प्यार का
दिवानगी में वहकते रह गये रात भर ।
बी पी षर्मा बिन्दु
Writer : – Bindeshwar Prasad Sharma (Bindu)
D/O Birth : – 10.10.1963
खूबसूरत …………
bahut bahut sukriya, mahashay jee.
बहुत बढ़िया लिखा है आपने ।
bahut badiya bindu ji
बहुत बढ़िया….पर इन् पंक्तियों में “हम तो तन्हा तें करवट बदलते रहे….ख्वाब में संवरते रह गये रात भर ” ….हो सकता ‘ख्वाब में संवरते’ में ‘में’ जो फ़ालतू है….भाव बदल जाता है…या हो सकता टाइपिंग में कुछ हेरफेर हुआ….
kajal soni jee aap ne meri tarif ki, main ushke liye aapka bahut sukra gujar huan.
Very nice bindu ji.
babbu jee
kuch typing ki wajah se meri kavita kuch badal gai.
Note :- ham to tanhan te , te ki jagah hee hogi . aur chauthi pankti khab mein ki jagah khab mere hongen.
thank you sir. ab main khyal rakhunga apne typing par.
Bijay jee sir bahut sukritya.
रचना वर्तनियों का सुधार कर उत्कृष्ट बनाई जा सकती है
बिन्देस्वर प्रशाद जी यह गजल में वजन लाने हेतु कुछ और प्रयास की आवश्यकता है……!