‘प्रेम का भौतिक आधार’
_अरुण कुमार तिवारी
मैं विचारता हूँ कभी-कभी।
प्रेम का भौतिक आधार!
नेह में,देह में ,छन्द में ,द्वन्द में,
आस में ,साँस में ,हास में ,क्रंद में|
उसका मौलिक आकार,
प्रेम का भौतिक आधार!
मैं विचारता हूँ कभी-कभी।
चाम में,काम में, दाम में ,नाम में,
अक्स में ,शक्स में ,वक्त में, शाम में|
मिलन का क्षैतिज व्यवहार|
प्रेम का भौतिक आधार!
मैं विचारता हूँ कभी-कभी|
क्रोध में, लोभ में ,शोध में ,बोध में,
अंस में, दंस में, अंक में, रोध में|
वासना का नैतिक आचार|
प्रेम का भौतिक आधार!
मैं विचारता हूँ कभी-कभी।
होश में ,जोश में ,तोष में ,कोष में!
मंच में ,वंच में ,पञ्च में (पांचो तत्वों में),पोष में,
सृष्टि का दैहिक आकार,
प्रेम का भौतिक आधार!
मैं विचारता हूँ कभी-कभी|
मैं विचारता हूँ कभी-कभी|
-‘अरुण’
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आपकी शुद्ध हिंदी शब्दों पर पकड़ प्रभावशाली है जो आपकी खूबसूरत रचनाओं को अकादमिक स्तर का बनाती हैं. बहुत खूब.
बहुत खूब अरुण जी
धन्यवाद मधुकर जी
धन्यवाद अभिषेक जी
अति सुन्दर .. ……
बहुत बेहतरीन रचना……अरुण जी
धन्यवाद तिवारी जी
mani जी को धन्यवाद!