हमने जिक्र-ए-हाल करना छोड़ दिया
सिलसिला रश्म अदायगी का करना छोड़ दिया
अब भी बहुत है हमको अपना कहने वाले
बस रौनक उसी से थी जिसने कहना छोड़ दिया
आसमान की हवस मे उड़े जा रहे थे
सच्चाई से वाकिफ हुऐ तो उड़ना छोड़ दिया
उसकी नफरत की सम्त से जो गुजरे
हमने तो इश्क ही करना छोड़ दिया
वफा साबित करने को जान नही दी हमने
बस इतना किया कि जीना छोड़ दिया
nice lines…………
Lovely…………………………………………..
सराहनीय एवं उम्दा रचनारचना??
बहुत सुन्दर …………….
बहुत खूबसूरत रचना ….प्रत्येक शेर वजनदार है ….निर्देश एक सुझाव है की अंतिम शेर के भाव नकारत्मक विचार प्रस्तुत करते है ……सकारात्मकता लिये के परिवर्तन किया जाये तो उचित होगा !!
उद्धरणार्थ :
वफा साबित करने को जरुरी नहीं जान दी जाये
बस इतना किया कि जीने का हुनर छोड़ दिया !!
Bahut hi khoobsoorat….or uspe khoobsoorat nivatiyanji ki nazar…sab kamaal hi kamaal….
बहुत- बहुत धन्यबाद आप सभी का |
निबतिया जी के सुझाब को में अमल में लाऊंगा इसका बदलाव भी जरूर करूँगा | धन्यवाद एक बार फिर से इस रचना को समय देने के लिए|