मंजिल पथ पर बढ ,
ओ साथी मंजिल पथ पर बढ !
तु अकेला है इस राह मे,
कोई नही है तेरी चाह मे,
गुमशुदा न होना जहाँ मे,
अद्रृश्य पत्थर है तेरी राह मे,
मुश्किल से न डर ,
ओ साथी मंजिल पथ पर बढ!
एक इरादा तेरे अंदर ,
सपने देखे जिसका मंजर,
जीवन मे तू दौड़ के देख ,
पार हो जायेगें सात समंदर,
हर पर्वत पर चढ,
ओ साथी मंजिल पथ पर बढ!
एक बार शुरूआत तू कर,
सपनो से मुलाकात तू कर,
दिल मे जो कलाकार छुपा है,
उससे हर दिन बात तू कर,
मन से मन को पढ़,
ओ साथी मंजिल पथ पर बढ़!
Sakaaraatmkta bhaavnaao se pripurn khubsurat laybadh prerak rachna …….ati sundr
बहुत ही उत्साहजनक और उम्दा रचना!
मधुकर जी आपने बहुत ही सटीक अन्तरा रखा है।जो मन को उत्साह से भरने की ताकत रखता है।
वाह …..,,
thanking you sir
क्षमा चाहता हूँ। निवातियां जी।
आपको ढेरो बधाइयां।
Ojpooran……behtareen……..
Ati Sunder rachna.