माँ को खेतों से
बेहद प्यार था,
चिलचिलाती धूप में
मूसलाधार बारिश में
झड़ों के दिनों में
खेतों में दिखती थी।
माँ को खेतों से
अद्भुत प्यार था,
वैसा ही जैसा उसे
अपने बच्चों से था।
वह समय की तरह थी
खेतों का विज्ञान जानती थी,
जब तक स्वस्थ थी
कभी नहीं थकती थी।
हर खेत का हिसाब रखती थी
लम्बे-चौड़े करोबार की
हिम्मत थी।
माँ अद्भुत थी
अपने बच्चों की राह
बहुत दूर तक देखा करती थी।
वह पहाड़ सी होगी
आकाश तक पहुँची
बर्फ से ढकी
नदियों सी बहती हुई।
माँ जब तक स्वस्थ थी
कभी नहीं थकती थी।
*महेश रौतेला
एक सुंदर रचना जो हमे सोचने को विवश करती है।बहुत बढ़िया रौतेला जी।
माँ की ह्रदय विशालता के चित्रण को अच्छे शब्दों में पिरोया है आपने ,,,,,,,,,,,,,,बहुत खूबसरत !!
माँ के बारे में जितना भी लिखा जाये बहुत कम है…..सूंदर रचना
एक बच्चे का प्रथम गुरु माँ ही होती है आपकी रचना बखूबी बताती है
Bhagwaan ke paas bhi maata tere pyar ka mol nahin……iss liye ham bhi kuchh nahin de sakte….aapke khoobsoorat bhaav jinmein sabse khoobsoorat moorat iss sansaar ki basi hai – Maa….mera slaam…
आपने बहुत अच्छी कविता लिखी है ।