नफरतों ने कितनों को लुटा,
किसी का घर तो किसी का शहर हैं छुटा
बईमानो के हाथों में ,मजबूर है बीका
नफरतों के बाजार में ,जमीर कहाँ टीका
मासूम की मुस्कुराहट छिनी और इससे क्या उम्मीद करो
मत पडो गहरा हैं ये समुद्र किनारे की क्या उम्मीद करो
नफरत से बिखरते प्यार का पीछा करो
लटु गया जो इससे, उसका घर आबाद करो
नफरतों के जहर से , अब ना इंनसानियत पे घांव करो
इंसान ही इंसान का कातिल, ऐ-मालिक अब तुम्ही इसका हीसाब करो
नफरत को अन्दर से निकाल बाहर करो
हसरत को इंनसानियत पर कुर्बान करो
:-अभिषेक शर्मा
(नफरत आज इस हद तक बड़ गयी हैं काई नफरत के चलते किसी का भी बुरा करे
किस ने हसरत बना ली किसको मिटाने की और कहीं नफरत आतंक में पनपती ,कही प्यार में)
बहुत खूब..अभिषेक जी
आपका दिल से शुक्रिया. अकिंत जी
खूबसूरत भाव…………..
आपका दिल से शुक्रिया…… शिशिर जी
सही कहा अभिषेकजी….बहुत ही खूबसूरत…..
बहुत बहुत धन्यवाद बब्बू जी………
नफरत को अन्दर से निकाल बाहर करो
हसरत को इंनसानियत पर कुर्बान करो
अभिषेकजी….बहुत ही खूबसूरत …….
आपका दिल से शुक्रिया…आदित्य जी
इस देश की राजनीती ऐसा होने नहीं देगी. अच्छे भाव पिरोये हैं आपने.
आपका दिल से शुक्रिया…विजय जी
bahut badiya abhishek ji
आभार मनि जी……..
सत्य वचन अभिषेक ……………………अति सुन्दर !!
आभार निवातियाँ जी
बहुत बढ़िया अभिषेक जी।
आभार अरुण जी…..