किस्से हमारे प्यार के आम हो गए,
शहर में हम यूँ ही बदनाम हो गए ।
रुसवाई ज़माने से, रूठ वो हमसे गए,
बोल मोहब्बत के इल्जाम हो गए ।
निगाहों की बातें गुजरे हुए दिन,
पहरे ज़माने के सरेआम हो गए ।
लकीरें राहों पर खिंच गईं अमिट,
रास्ते भी अब तो तूफ़ान हो गए ।
विजय कुमार सिंह
बहुत खूब.. विजय जी
रचना पसंद करने के लिए धन्यवाद.
वआह….क्या बात है……बहुत ही खूब……
रुसवाई ज़माने से, रूठ वो हमसे गए,
बोल मोहब्बत के इल्जाम हो गए ।
रचना पसंद करने के लिए धन्यवाद babu ji.
बेहतरीन……….बहुत ही सुन्दर विजय जी
रचना पसंद करने के लिए धन्यवाद abhishek ji.
सुन्दर प्रेम रचना……….
रचना पसंद करने के लिए धन्यवाद sir.
behtarin rachna….vijay ji
पसंद करने के लिए धन्यवाद.
वाकई बेहतरीन तराशी गयी रचना।
मेरी पसन्द की लाइन_
‘रास्ते भी अब तो तूफ़ान हो गए’
वाह …वाह….वाह…
पसंद करने के लिए धन्यवाद arun ji.