बड़ा मशहूर रुतबा ऐ मलकियत था……….!
दौलतमंदो में नाम सुमार था उसका …….!
आज पता चला कितना कंगाल था ………!
बेटे की मय्यत को चार काँधे न जुटा सका !!
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डी. के. निवातियाँ [email protected]@@
बड़ा मशहूर रुतबा ऐ मलकियत था……….!
दौलतमंदो में नाम सुमार था उसका …….!
आज पता चला कितना कंगाल था ………!
बेटे की मय्यत को चार काँधे न जुटा सका !!
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डी. के. निवातियाँ [email protected]@@
निवातियाँ जी दौलतमन्दो के यहाँ इतने तो नौकर एकत्र हो जाते है. हाँ दिल से रोने वालों की कमी ज़रूर हो सकती है.
यही तो विडंबना है शिशिर जी……….. उनके पास सब कुछ होते हुए भी कुछ नहीं होता……नौकरो की जमात होती है लेकिन ………वो नहीं होता जिसकी आवश्यकता होती है !!
समीक्षात्मक प्रतिक्रिया का ह्रदय से स्वागत है !!
बहुत बढ़िया निवातियाँ जी
अनेको धन्यवाद मनी…………………….!!
अति सुन्दर…………………..निवातियाँ जी
बहुत बहुत शुक्रिया अभिषेक …………………!!
सही कहा आपने….मुश्किल के समय ही अपनी खुद की और दूसरों की पहचान होती है….सदैव की तरह बहुत ही खूबसूरत….
बब्बू जी बहुत बहुत धन्यवाद आपका ………..!!
प्राय ऐसा देखने को मिलता है ……….मेरे कहने का तातपर्य यह नहीं की उसकी अंत्येष्टि नहीं होती …अपितु यह स्पष्ट करना है………… उसे सांसारिक रूप में वो मान सम्मान या अधिकार प्राप्त नहीं होता जो होना चाहिए !!
बिलकुल सही कहते हैं आप….रुतबे के नशे में उसने अपनों को खो दिया…ऐसे समय में उसको पता चला की वो सम्मान जो रुतबे में ही सिर्फ देखता था….वो किसी काम का नहीं…जब साथ अपने किसी को न पाया…
यथोचित बब्बू जी …………… पुन: धन्यवाद आपका !!
बहुत बढ़िया निवातियाँ जी
बहुत बहुत धन्यवाद अंकित ……….!!
कभी-कभी ऐसी परिस्थितियां होती हैं जब समाज अंदरूनी रूप से खफा होता है. लेकिन सर आजकल ऐसा अच्छाई पसंद लोगों के साथ होता है. आप किसी की गलती पर रोक-टोक करेंगे वह तुरंत आपसे दूरी बन लेगा. रचना के भाव खूबसूरत हैं…………..
आपका कथन दुरुस्त है वक़्त की चाल कैसी भी हो सकती है …………विजय जी …..अनेको धन्यवाद आपका !!
.मेरे कहने का तातपर्य यह नहीं की उसकी अंत्येष्टि नहीं होती …अपितु यह स्पष्ट करना है………… उसे सांसारिक रूप में वो मान सम्मान या अधिकार प्राप्त नहीं होता जो होना चाहिए !!
निवातियाँ जी ………….बहुत ही खूबसूरत…
शुक्रिया ………..आदित्य !!
क्या खूब लिखा आपने श्रीमन्!
जीवन बीत जाता है बस हैसियत बनाने में नौकर और नौकरी जुटाने में पर अपने लिए अपनों के लिए चार कन्धे जुटा पाना सबकी किश्मत में कहाँ?समर्थता और व्यवहार की कसौटी पर कितने सरल तरीके से आपने प्रहार किया है। ये लाइने हमे अपने जीवन जीने के तरीके पर सोचने को मजबूर करती हैं।
बहुत खूब…….
आपकी अमूल्य प्रतिक्रिया का ह्रदय से स्वागत एव बहुत बहुत धन्यवाद अरुण जी !!
बहुत बढ़िया ……………….. निवातियाँ जी !!
बहुत बहुत धन्यवाद सर्वजीत जी ।।