निरन्तर गति को लय दे चल रे प्राणी
बिन लय के शशक नहीं विजय पाते है
बाहुल्य के प्रभाव में दुर्जन हुंकार भरे
सज्जन तो व्यवहार से पहचाने जाते है
बूँद – बूँद से तृप्त हो जाते है पुष्प वृक्ष
प्रबल वेग धारा से किनारे बह जाते है
संयम से काम लेना पहचान ज्ञानी की
उग्र स्वभाव धारण कर शैतान कहलाते है
मंद फुहारों से ही बनता वर्षा का आकर्षण
मेघ फटने से तो शिला भी बह जाते है !!
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डी. के. निवातियाँ ——————[email protected]
बहुत खूबसूरत ……. निवातियाँ जी
धन्यवाद अभिषेक ……………….!!
लाजवाब……ज़िन्दगी जीने के अंदाज़ का ब्यान सिर्फ चाँद पंक्तियों में……अनमोल……जय हो…..
धन्यवाद बब्बू जी ……………….!!
बेहतरीन रचना है आपकी जो अत्यन्त ही गहरे भावों को समेटे हुए है. सभी पंक्तियां मुझे अत्यन्त प्रिय लगीं.
धन्यवाद विजय जी ……………….!!
बेहद खूबसूरत…..,सुन्दर सीख देती बेहतरीन रचना !
शुक्रिया मीना जी …………..!!
निवितया जी शब्दों के माध्यम से आपने एक बहुत ही प्रेरणा रूप कविता की रचना की है l बहुत खूबसूरत है l
रचना पसंद करने के लिए हार्दिक धन्यवाद राजीव जी !!
बहुत सुंदर रचना सर……..बेहतरीन……
अनेको धन्यवाद अलका ……………….!!
Bahot hi Khubsurat Rachana
बहुत बहुत शुक्रिया इन्दर आपका !!
व्यवहार से ही इन्सान पहचाना जाता है, सज्जन और शैतान का पता चलता है ………………………….. बहुत ही बढ़िया निवातियाँ जी !!
आपकी नजरे इनायत का तहदिल से शुक्रिया सर्वजीत जी ………….!!
बेहद खूबसूरत……………………
Thanks for your comments Shishir Ji.
निवातियाँ जी बात दिल पर जा लगी…..बहुत बढ़िया
मेरे लिए इससे अधिक हर्ष की बात क्या होगी की मेरे भाव आपके ह्रदय तक पहुंचे !!
बहुत बहुत धन्यवाद मनी……!!
देर से प्रतिक्रिया पर क्षमाँ चाहता हूँ।
आपकी यह रचना पुनश्च एक नए मोती की तरह है जो आपकी काव्य साधना के हार में एकदम फिट बैठती है।
वाह!
आपकी स्नेहल दृष्टि व् ऊर्जावान प्रतिक्रिया के लिए अनेको धन्यवाद एवं हार्दिक आभार !!
डी के सर, आपको नमन करता हूँ ऐसी लाजबाब रचना के लिए…
निरन्तर गति को लय दे चल रे प्राणी
बिन लय के शशक नहीं विजय पाते है
मै उपयुक्त पंक्ति को कई बार पढ़ा तो हर बार अर्थ तो स्वाभाविक रूप से निकल रहा था पर द्वितीय पंक्ति सजाने की इच्छा हो रही थी! आप मेरे प्यार को अन्यथा नहीं लेंगे।
आपका मंतव्य सहर्ष स्वीकार्य है सुरेन्द्र जी ………!!