उसके मेहनत के पसीने से पलते हैं
और हम कितना बड़ा बनते हैं
कतरा कतरा लगा देता है
अपने हर चाव को चबा लेता है
और फ़िर कैसे हम हँसते हैं
उसके मेहनत के पसीने से ….
उसके एक बूँद का बदला चुकाना मुश्किल है
कांपती रूह को सीने से लगाना मुश्किल है
और उसे कैसे दरकिनार हम करते हैं
उसके मेहनत के पसीने से ….
एक टूकड़ा बड़े नसीब से वो पाता है
श्रम से अपने कलेजा निकाल खाता है
और हम शान से कैसे जीते हैं
उसके मेहनत के पसीने से ….
दबा जाता है वो दिन रात खंडहरों में
पर लगा जाता है चार चाँद सारे शहरों में
और कैसे उसकी मैयत पर
हम खिलते हैं
उसके मेहनत के पसीने से ….
हमारे महलों की चमक बस उसी से होती है
नज़र उठाओ !देखो तो
उसी की आत्मा रोती है
जिगर वो रखता है
और हम जीते हैं
उसके मेहनत के पसीने
से पलते हैं
और हम कितना बड़ा बनते हैं
!
!
डॉ.सी.एल.सिंह
श्रमिको को समर्पित एक उम्दा रचना……….!
आप की प्रतिक्रिया के लिये कोटिश धन्यवाद !
श्रमिकों की स्थिति को दर्शाने के लिए अच्छे भाव प्रस्तुत किये है आपने !!
निवतिया जी आपको कोटि कोटि धन्यवाद…!
अति सुन्दर ……………
दिल से धन्यवाद…….!
bahut badiya sir
समाज के निम्नतर व्यक्ति के महत्व का एहसास कराती एक बेहतरीन रचना जो कवि हृदय की संवेदनशीलता की परिचायक भी है। ईश्वर करें ऐसे भाव सभी जन जन में समाहित हो जाएँ!
….बहुत खूब डॉक्टर साहब!
बहुत ही सत्यपरक रचना.
सभी कवि मित्रों को रचना पढ़ने औऱ उसपर बहुमूल्य प्रतिक्रिया के लिये दिल से आभार !