यादें और हवा
यादों के सांए से गुजर कर
यूं हवा चुप चली जाती है
जैसे प्यासी आंखों को शबनम
मिलकर बिछुड़ जाती है ।
यह शीतल मनमोहक पवन
ताजगी भरे उत्साहित मन को
अन्दर से खदेड़ जाती है ।
यादों के सांए से गुजर कर
यूं हवा चुप चली जाती है।
मन को देकर विचार नया
मुस्कुरा चंचल उजली हवा
प्रेम राग गाकर चली जाती है ।
यादों के सांए से गुजर कर
यूं हवा चुप चली जाती है ।
उनकी यादों का मंजर फि र
छा जाता है सुनसान मन पर
हवा हिलोंरे देकर जगा जाती है ।
यादों के सांए से गुजर कर
यूं हवा चुप चली जाती है ।
बहुत सन्दुर नवल जी यादें और हवा के बीच
सन्दुर रचना नवल जी
बहुत सुन्दर…नवलजी….