जले बचपनों की ये परछाइयाँ
-अरुण कुमार तिवारी
ग़रीबी की करतूत देखी है हिलती,
जले बचपनो की ये परछाइयाँ
ये परछाइयाँ….
कहीँ केतली को उठाये नज़ारे,
है जूठे निवालों में सिमटा वो पोषण|
नज़र के सवालों लपेटी हंसी वो,
उदर की क्षुधा में परोसा वो शोषण|
है रौनक कहाँ खो गयी ज़िन्दगी से,
मासूम बचपन खिली झाइयाँ,
जले बचपनो की ये परछाइयाँ|
गरीबी की करतूत देखी है हिलती,
जले बचपनों की ये परछाइयाँ|
हो जाड़े के दिन या ठिठुरती वो रातें,
फ़टे कुछ लबादों में सिमटे ये बचपन|
सिसकती झिझकती तरसती ये आँखें,
निशानी उठाये सुलगता ये तन मन |
हिलाते पसलियों से तकती सी रिसती,
उम्मीदों भरे पग की बेवाइयाँ|
जले बचपनों की ये परछाइयाँ,
गरीबी की करतूत देखी है हिलती,
जले बचपनों की ये परछाइयाँ|
निरखते कहाँ झुक रहे छोटे कन्धे,
वजन सभ्यता का उठाये उठाये |
अँधेरी दुकानों के अंधे ये मालिक,
बड़प्पन लुटाए तमाशा दिखाएँ|
कहाँ हैं वतन के नियामी नियन्ता?
दिखाए कोई अर्थ की खाइयाँ!
दिखाए कोई अर्थ की खाइयाँ…….!!
………………
जले..बचपनो..की..ये..परछाइयाँ|
गरीबी की करतूत देखी है हिलती,
जले बचपनों की ये परछाइयाँ|
-‘अरुण’
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बहुत खूब अरुण जी सुंदर रचना l
कमाल कर दी आपने गहरे कटाक्ष से…..क़ानून है फिर भी बच्चों का बचपन यूं बर्बाद हो रहा है….
लाजवाब अरुणजी…लाजवाब….
निरखते कहाँ झुक रहे छोटे कन्धे,
वजन सभ्यता का उठाये उठाये |
अँधेरी दुकानों के अंधे ये मालिक,
बड़प्पन लुटाए तमाशा दिखाएँ|
कहाँ हैं वतन के नियामी नियन्ता?
दिखाए कोई अर्थ की खाइयाँ!
दिखाए कोई अर्थ की खाइयाँ…….!!
सर भावों को यथारूप ग्रहण करने हेतु आपका हृदय से आभार!!
धन्यवाद श्रीमन्!
बहुत खूब अरुण जी
सुंदर रचना………….
पसन्द करने वाले सभी अग्रजों को नमन!
बाल शोषण पर बेहतरीन रचना है आपकी. समाज के इस दर्द की व्याख्या करने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद.
कहाँ हैं वतन के नियामी नियन्ता?
दिखाए कोई अर्थ की खाइयाँ!
आपका बहुत बहुत धन्यवाद श्रीमन्।
बेहतरीन रचना. एक कटु सच्चाई को बड़े ही मार्मिक तरीके से पेश करती है .
कोटिशः धन्यवाद श्रीमन्!
hridaysparsi aur marmbhedi bahut sunder
रचना पसन्द करने के लिए अवस्थी जी को नमन!
जहाँ तक मै समझ पा रहा हूँ अरुण जी, आपने आभाव में जीते बच्चों के हर पहलू और प्रत्येक रूप, काल खंड को अपनी रचना में बेहद परिपक्व ढंग से जगह दी है, भाव मार्मिक तो है ही, सोचने को विवश करती उम्दा रचना!
(वैसे अरुण जी मेरी अपनी राय में अब तक गरीबी की कोई परिभाषा है ही नहीं, यहाँ हर कोई गरीब है, कोई पैसे से, कोई ममता से, कोई प्यार से, कोई दया से …)
आपको इस उम्दा रचना के लिए कोटि कोटि साधुवाद!
रचना पसन्द करने के लिए आपका हृदय से आभार!