मेरी गजल भाग १
मोहब्बत की गलियों में
आज मेरे भी हिसाब हुए
दिल तो शीशा था कम्भाकत
जिसके टुकड़े आज मेरे भी हजार हुए
2— वो संगदिल थे
दिल संग लगा ना सके
इश्क की दवा छोडिये
वो कमबख्त जहर भी पिला ना सके
3 — हमें अरसे हुए
उनसे दिल लगाये हुए
वो दिलकश दिलरुबा
इसे हमारी अव्वार्गी समझ
अपना हमदम किसी और को बना गए
4– हम उनके इन्तजार में
बीच बाजार बेजान पड़े थे
वो कमबख्त हसीना
हमें गरीब समझ
हमारी हाथ में सिक्का थमा
किसी और का हाथ थाम गए
अभिषेक राजहंस
वाह….अधूरी मोहब्बत की पूरी दाश्तान…
सुंदर …………