जो बोया वही पाया मैंने,
एक माँ कहती अपने बेटे से,
खुश हु मैँ, फ़िक्र मेरी मत करना,
खुश रहना अपने जीवन में,
दिल अपने पर बोझ मत रखना,
चला था बेटा छोड़ माँ अपनी को,
वृद्धाश्रम की दीवारों में,
जहाँ ना सुननी थी बेटे के पैरो की आहट,
ना होनी थी उसको रोटी देने की चिंता,
ना रही किसी बात की ख्वाहिश,
जान निकलना बाकी था, सूने गलियारों में,
बेटा जाते-जाते बात मेरी सुन जाओ,
मैंने की पांच भूर्ण हत्याए,
तुझको पाने की खातिर,
उसी कर्म की सजा हम है पाए,
सच कहा किसी ने बबूल बीज,
आम कहाँ से खाये ?
जो बोया वही पाया मैंने,
एक माँ कहती अपने बेटे से,
बहुत ही सुन्दर भाव हैं आपके…..अति सुन्दर….सब समझ जाएँ यह तो चिंता ही खत्म हो जाए….
तहे दिल से सी एम शर्मा जी आपका धन्यवाद
बालिका शिशु भ्रूण हत्या पर मौन किन्तु तीक्ष्णतापूर्वक प्रहार करती आपकी यह रचना वास्तव में भावनाओं को झकझोर देने की काबिलियत रखती है।
बधाई!!
तहे दिल से आपका धन्यवाद अरुण जी इस हौसलाअफजाई के लिए
प्रकृति हमें हमारे कर्मो का आइना दिखती है. अच्छी भावनाएं.
धन्यवाद विजय जी
नारी के दर्द में नारी की भूमिका के एक पहलू को आपने बड़ी खूबसूरती से उकेरा है
धन्यवाद शिशिर जी ऐसे हो हौसला अफजाई करते रहे
पुत्र मोह में पुत्री को नकारने वाले समाज की संकीर्ण मानसिकता पर तीक्ष्ण प्रहार करती दमदार रचना ……… अति सुन्दर मनी !!
बहुत बहुत धन्यवाद निवातियाँ जी मेरा उत्साह बढ़ाने के लिए
अति सुन्दर……………
thanks abhishek ji
सुन्दर …………..…..
thanks aditya ji
मनी जी मेरे पास शब्द नहीं है आपकी रचना बेहद अच्छी है मै आपकी इस रचना के लिए कहूंगा लाजवाब l
बहुत बहुत धन्यवाद राजीव जी आपका तहे दिल से,
मनिंदर जी आपकी रचनाये लिक से हटकर होती है, गजब……..आपको साधुवाद!
बस लिखना सिख रहा हु मैँ तो अभी……एक बार फिर से आपकी इस सुन्दर प्रतिकिया के लिए तहे दिल से धन्यवाद