जीवन की डोर
जिन्दगी नीरस हो चली है
आशाएं धूमिल होने लगी हैं
मगर फि र भी ना जाने क्यों
डोर जीवन की बंधी हुई है ।
साहित्य की क्या खोज करूं
खुद जीवन मेरा खोया है
मैं क्या कोई कविता लिखूं
खुद अन्तर्मन मेरा रोया है ,
सोचता हूं तभी आज मैं
क्यों अश्रुधारा बह चली है ।
मगर फि र भी ना जाने क्यों
डोर जीवन की बंधी हुई है ।
आंखों में अश्रु हाथ में कलम
लिखना क्या है मुझको ये
कुछ भी ज्ञात नही है सनम
तभी तो बार-बार जहन में
उठता है सवाल जिन्दगी का
दिमाग से यादें मिट चली हैं ।
मगर फि र भी ना जाने क्यों
डोर जीवन की बंधी हुई है ।
जीवन तो आशा पर ही निर्भर है…भावों को आपने सुन्दर तरीके से उजागर किया है…..
सुंदर भाव !
आशा ही जीवन है ………….बिना किसी आशा के जीवन निरर्थक हो जाता है ……