आँधी ने तो हद ही कर दी
…आनन्द विश्वास
आँधी ने तो हद ही कर दी,
धूल आँख में सबके भर दी।
धुप्प अँधेरा काली आँधी,
दिन में काली रात दिखा दी।
कचरा-पचरा खूब उड़ाया,
फिर पेड़ों का नम्बर आया।
बड़े-बड़े जो पेड़ खड़े थे,
सब ने देखा, गिरे पड़े थे।
कुछ टूटे, कुछ गिरे थे खम्बे,
ऊँचे थे अब दिखते लम्बे।
आँधी-अँधड़ जबरदस्त था,
सारा जग हो गया त्रस्त था।
आए दिन आँधी जब आए,
रौद्र-रूप जब प्रकृति दिखाए।
रौद्र-प्रकृति की समझो भाषा,
उसकी भी है, तुमसे आशा।
ज्यादा बारिश,बादल फटना,
शुभ सन्देश नहीं ये घटना।
कहीं सुनामी की चर्चा हो,
हद से ज्यादा जब वर्षा हो।
समझो सब कुछ सही नहीं है,
अनहोनी कुछ, यहीं कहीं है।
सावधान अब होना होगा,
वरना सब कुछ खोना होगा।
जागो, अभी समय है भैया,
क्रोधित है अब धरती-मैया।
सोचो मिलकर, ऐसा कुछ हो,
हमभी खुश हों धरती खुश हो।
आओ मिलकर बाग लगाएं,
रूँठी धरती, उसे मनाएं।
चहुँ-दिश जब हरियाली होगी,
सूरत बड़ी निराली होगी।
धरती का कण-कण हँस लेगा,
सृष्टि-सन्तुलन खुद सम्हलेगा।
धरा हँसेगी, सृष्टि हँसेगी,
शीतल स्वच्छ समीर बहेगी।
…आनन्द विश्वास
http://anandvishvas.blogspot.in/2016/06/blog-post_14.html
बेहतरीन रचना आनंद जी…………..
हम अगर अपना संतुलन खो देंगे तो कुदरत बदला लेगी ही……आप की रचना यथार्थ को परिभाषित करती है….पर हम अपनी दौड़ में सब भूल रहे हैं की नुक्सान अपना ही कर रहे…..बहुत ही सुन्दर…खूबसूरत रचना…..
अति सुन्दर शिक्षा प्रद रचना आनंद जी ……….संतुलन अति आवशयक है जब इसे बनाये रखने में इंसान असमर्थ होता है तो प्रकृति स्वयं अपने तरीके से इसे संतुलित करती है …जिसका खामियाजा हमे विनाश के रूप में भुगतना पड़ता है !!
James some vatavar ko peid poudhon swara surakshit rakhne ko prerna deti khubsurat Kavita hai aapki aanand hi
बधाई आनंद विश्वास जी रचना सुन्दर पर शास्त्रानुसार देवों का हसना नहीं मुस्कराना सुंदर –
सोचो मिलकर, ऐसा कुछ हो,
हमभी खुश हों धरती खुश हो।
आओ मिलकर बाग लगाएं,
रूँठी धरती, उसे मनाएं।
चहुँ-दिश जब हरियाली होगी,
सूरत बड़ी निराली होगी।
धरती का कण-कण हँस लेगा,
सृष्टि-सन्तुलन खुद सम्हलेगा।