कैराना, आजमगढ़, विकासपुरी तथा अन्य जगहों पर इस्लामिक अत्याचार पर मौन शासन और कायर हिन्दुओं को ललकारती मेरी ताजा रचना —
रचनाकार- कवि देवेन्द्र प्रताप सिंह “आग”
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कैराना में कायरता आजमगढ़ में है आगजनी
देखो पुरी-विकास, रामपुर में भी जाग रहा गजनी
प्यार मुहब्बत अमन चैन वाली मुरझाई हैं कलियाँ
राम, कृष्ण की राजधानियों में हैं गज्बा की गलियां
जहाँ बसे विषदन्त वराह की फौज खड़ी कर डाली है
छीना सुख और चैन सभी की विकट घड़ी कर डाली है
इन सबकी नीयत में खटका, खोटा हिंदुस्तान बना
तभी पूर्णिया धार मालदा छोटा पाकिस्तान बना
बस अपवाद चार छः ही हैं देशभक्त के नामों के
कोई नहीँ है अनुगामी पथ पर भी आज कलामों के
फ़िर भी सत्ता के शहजादे आँख मूंदकर सोये हैं
इफ्तारो में निर्दोषों का खून चूसकर सोये हैं
और कहूँ क्या मौनी-आसन सत्ता के यदुवंशो की
यदुकुल में जन्मे कलियुग के गौहत्यारे कंसो की
गौहत्यारो को इनाम देकर के गोद सुलाया है
गौपालक ने करतूतों से खुद गौवंश रूलाया है
जाल बिछाया जिसने जाली उसको शरण बिठाया है
चादर की चाहत में भगवा का ही मरण कराया है
और आज प्यादे भी क्या मोदी जी के मजबूर हुए ?
सभी 72 सांसद थे जो क्या जन्नत की हूर हुए ?
माया जी क्या मोह भंग है अब दलितों और पिछ्डो से ?
मोमिन अत्याचार हुए हैं प्रिय अपनों के दुःखड़ों से ?
और तोड़ दी हिंदू ने भी कायरता की मर्यादा
जातिवाद से प्यार हुआ है आज धर्म से भी ज्यादा
क्या इनकी खातिर ही महाराणा प्रताप बलिदान हुए ?
वीर शिवाजी सम्भाजी इनकी खातिर कुर्बान हुए ?
जागो वरना लिखी जाएगी फ़िर से कथा गुलामी की
राम-राम की तस्वीरें होगीं अल्लैहि सलामी की
पूजा मंदिर जटा जनेऊ सबका सब खो जाएगा
कोई भी कुत्ता कालिख से तेरा मुँह धो जाएगा
रुधिर रगों का राम नाम लेकर के आज उबालो जी
छोड़ अहिंसा वाली बातें आज क्रोध को पालो जी
जाकर कह दो सत्ता के दादाओं से
क्या डरना अब इस्लामिक आकाओं से
हद हो गयी आरक्षण की हदबंदी की
इन्हें ज़रूरत आज हुई नसबंदी की
पहचानो इनके नापाक इरादों को
आग लगा दो इन गज्बा के प्यादो को
“देव” कहे वरना होगी गणना फ़िर आज शिखंडी में
माँ, बहनों की नीलामी होगी जिस्मों की मंडी में
तुझे कसम है अब चंदन और रोली की
भाषा कर डालो अपनी अब गोली की
प्रत्यंचा शमशीर उठा ले भाल सजा
इन दुष्टों के लिए गरल की थाल सजा
अमन चैन का वास तभी हो पाएगा
गज्बाई का नाश तभी हो पाएगा
अब कर लो मिलकर प्रायश्चित कायरता के पापों का
गरल उगलना शुरू हो गया आस्तीन के सांपों का
———-कवि देवेन्द्र प्रताप सिंह “आग”
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