कहाँ तुझे छुपा लु ऐ मेरी नन्ही परी ?
तू अभी अबोध है, दुनिया की मक्कारियों से,
हवस की नज़र गड़ाए है हर कोई तुझ पर,
ले जाऊ कहाँ तुझे बचा ? तन के इन शिकारियों से,
मर्यादा तोड़ देते है चाहे अपने हो या गैर,
ना रिश्तों का लिहाज़, ना शर्मसार होने की फ़िक्र,
सिर्फ भोग की वस्तु समझ करते है नारी का जिक्र,
जैसे-जैसे तुम कदम निकालोगी घर से बहार,
निर्वस्तर करेंगे तुझे अपने ख्यालो में,
भूल उनकी की भी कोई बहन, बेटी है,
कदम-कदम पर निर्लज कटाक्ष से करेंगे प्रहार,
कहाँ तुझे छुपा लु ऐ मेरी नन्ही परी ?
कहाँ तुझे छुपा लु ऐ मेरी नन्ही परी ? Very nice.
thanks vijay ji
मनिंदर एक माता पिता की वाजिब चिंता बताती सुंदर रचना…….
एक बार फिर से शिशिर जी आपका तहे दिल से धन्यवाद इस हौसलाअफ़्ज़ाई के लिए
सुंदर रचना…….….….
thanks abhishek ji