गरम पवन
ऊष्ण होकर बह पवन
क्यों ठंड संग लाती है,
ठंड के मारे हाल बुरा है
कंपकंपी बंध जाती है ।
यहां जंगल बियाबान में
हूं तुम पर ही मैं आश्रित
तुम ही यदि दोगी धोखा
हो जाऊंगा मैं स्वयं अधीर
आकर बंधाओं मेरी धीर
क्यों मुझे आज रूलाती है ।
ठंड के मारे हाल बुरा है
कंपकंपी बंध जाती है ।
नवलजी…गर्मी में आपको ठण्ड चाहिए…हा हा हा…मन बावरा है….बहुत खूब….