मैं लिखता रहूँगा!
मैं लिखता रहूँगा!
दिखाओ नहीं बन्दिशों की कटारी,
सजाओ नहीं कँट वर्तुल ये क्यारी,
भले साँस रोधित भले हो तिजारी,
मैं दिखता रहूँगा!
मैं लिखता रहूँगा!
बिना द्रोण को ही चढ़ाये अँगूठा,
सधूंगा करूँगा यतन वो अनूठा,
भले गिर पडूँ पर उठूँगा चलूँगा!
मैं सिखता रहूँगा !(सीखता)
मैं लिखता रहूँगा!
भले कोई कीमत नहीं आज मेरी,
लगाता फिरूँगा मै हर राह फेरी,
हो किंचित भले भाव लगने में देरी,
मैं बिकता रहूँगा!
मैं लिखता रहूँगा!
कलम छीन लो छीन लो ये कहानी,
सुखा दो ये दरिया समन्दर का पानी,
तपे मरु धकेलो उखाड़ो जवानी,
मैं टिकता रहूँगा!
मैं लिखता रहूँगा!
अगर मर भी जाँऊ नही आज गम है,
है जीवन जिया जो कहीं से क्या कम है?
भले तन है सूखा मगर रूह नम है,
मैं मिटता कहूँगा!
मैं लिखता रहुगा!
मैं लिखता रहूँगा!!
-‘अरुण’
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अवश्य ही लिखते रहें, लेखक का धर्म है लिखना. एक बार “मुझे मत मारो (बेटी)” और “मुझे स्वर दो, मैं बोलूंगा” अवश्य पढ़ें.
जी सर धन्यवाद!
मैं अवश्य पढ़ूँगा!
सुन्दर रचना……..तिवारीजी
धन्यवाद श्रीमन्
आपकी भाषा में में एक जोश नज़र आता है. अति सुंदर
आज से परिपूर्ण कर्म साधना को प्रेरित करती खूबसूरत रचना ……..अति सुन्दर !!
ओज से परिपूर्ण कर्म साधना को प्रेरित करती खूबसूरत रचना ……..अति सुन्दर !!
अरुण जी कविता में तो आपकी जोश है ही किन्तु आपके शब्द “मैं लिखता रहूँगा!” ने पूरी कविता को बखूबी बांधे बांधे रख है l आपकी रचना लाजवाब है l
आप सभी अग्रजों को मेरी रचना पसन्द कर आशीष वचनों से प्रोत्साहन के लिए हृदय से नमन। आपके ये शब्द निश्चय ही हताशा के दिनों में ऊर्जान्वित करेंगे।
बहुत ही बढ़िया…..
पसन्द करने के लिए शुक्रिया सर
लाजबाब रचना…….न झुकेंगे न रुकेंगे……हम कर्म पथ की बेदी पर आगे बढ़ते रहेंगे।
लाख बंदिशे हो, खिलाफत जमाना करने लगे…..
हवा भी अपना रुख बदले देख हमे
घोर गर्जना से सबकों साथ ले बढ़ेंगे
हम कर्म पथ की बेदी पर आगे बढ़ते रहेंगे…..!
रचना पसन्द करने के लिए धन्यवाद सर