उड़ते परिंदे को तुम ना रोको
मंजिल को पाना इन से सिखो।
सूरज की पहली किरन से ये तुमे कुछ कहते
हमारे जीवन में, ना जाने कितने रंग भर देते।
देखो अपना आशियां, ये कैसे बनाते
तिनको से अपना गुलिस्तां सजाते।
आसमां की बातो को तुम तक ये पहुंचाते
क्या कभी अपने लिये ये कुछ भी मांगते?
परिंदे जब हमें इतना कुछ बिना बोले देते
हम क्यों इनके साथ कुछ गलत कर देते।
परिंदे जिंदगी की नयी राह सिखाते
फिर क्यों हम इनको अपने घरो मे सजाते।
:-अभिषेक शर्मा
satya kaha aapne abhishek……nischal prem aur karm ka udhaaran parindo se badhkar kya ho sakta hai …!!
hearty thanks, sir
अभिषेक शायद आप परिंदों के माध्यम से घर के बालक बालिकाओं को अपने सपने पूरे करने देने की स्वतंत्रता की बात कर रहे हैं. यदि ऐसा है तो भाव तो अच्छे हैं लेकिन रचना को और पररपक्व करने की आवश्यकता है जो निश्चय ही अभ्यास से संभव होगा.
thankes a lots sir, is m bhaw alag alag h ,udte parinde se bahut kuch sikha ja sakta hai,husalah ,nischal prem llike “पक्षियों का सुंदर संसार”
अभिषेक अच्छी तरह पिरोया है आपने परिंदों के माध्यम से….जीवन डोर को………!
हार्दिक आभार आपका