तुम चले तो गये अजनबी बनकर
मगर यादो का गुलिस्ताँ अभी मेरे पास है ……….!
सजाए बैठा हूँ इस उम्मीद में
मिलोगे कभी जिंदगी के किसी मोड़ पर ………….!
खिदमत ऐ पेश करूँगा स्वागत में,
एक एक शब्द महक उठेगा गुलदस्ते में याद बनकर ..!!
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डी. के. निवातियाँ [email protected]
लाजवाब कमाल कर दिया निवातियाँ जी l
आपकी खूबसूरत प्रतिक्रिया के लिए बहुत बहुत शुक्रिया राजीव जी ……….!!
Lovely …………………….
Thanks Shishir ji ………..
khubsurat………………………….
Thanks vijay ji ………..
Waah kya andaaz hai khusboo bikherne ka chaahat intzaar umeed ke guldaste mein…bahut hi umda na khatam hone wali khusboo bhara guldasta pesh kiya hai….laajwaab…khusboo bhar gayee tann mann mein….
बब्बू जी आपकी प्रतिक्रिया का अंदाज निराला है ……….आपके अनमोल वचन ऊर्जा प्रदान करते है ………हार्दिक आभार आपका !!
bahut khub llikha h ap ne
thanks abhishek………..!
निवातियाँ सर, आप की यह रचना कई बार पढने के बाद मुझे जो लगा की यह पूर्णरूप से आपके मनोभाव और रचना उद्देश्य की सार्थकता तो परिलक्षित हो गयी है पर इसमें कुछ शब्दों की प्रचुरता भी है। आप मुझे माफ़ करते हुए केवल मेरे मंतव्य को समझने का प्रयास करियेगा क्योकि आपकी रचना बहुत ही सारगर्भित और यथार्थपूर्ण होती है…..!
सुरेन्द्र जी ……बार बार पढ़ने और इतनी गहनता से नजर करने के आपका आभारी हूँ ……आपका मंतव्य स्वागत योग्य है …..कभी कभी शब्दों की पुनरावर्ती या कुछ शब्दों की प्रचुरता रचना के भाव को सरलता से स्पष्ट कराने के लिए आवश्यक हो जाती है… .!!
आपका बहुत बहुत धन्यवाद इसी तरह से आपने अमूल्य विचारों से लाभान्वित होने के लिए लालायित !!