आज याद आये वो दिन
जब हम भी किसी पे मरते थे
अक्सर तनहाई में उसका ही
हम नाम लिया करते थे
क्रोध भरी नजरों से वो
हमको देखा करती थी
हम तो चाहते थे जान से ज्यादा
पर प्यार नहीं वो करती थी
सांझ-सवेरे उसको हम
खिड़की से देखा करते थे
वो करने लगे प्यार हमसे
हर पल सोचा करते थे
हमारी आशिकी को देखकर
हो गया उसको भी प्यार
कुछ न बोली मुख से वो
पर नैंनों से कर दिया इकरार
एक दिन इक तूफान में
प्यार मेरा वो खो गया
पता लगाया तो देखा कहीं
तय रिश्ता उसका हो गया
लुट गयी मेरी दुनिया
दिल टुकड़े-टुकड़े हो गया
चलो बंद करो अब ये पाठ
जो हो गया सो हो गया
योगेश अंत तो बेहतरीन हैं. अति सूंदर.
जो हो गया सो हो गया, जिंदगी का यही फसाना है, जब तक सांस है तब तक कदम बढ़ाना है ।
very nice …………………….!!
बेहतरीन ……….
thanks all…………….
Bahut badhiya…..
लाजबाब और उम्दा रचना……..!