बेजुबान पशुओं का करते इतना बड़ा संहार,
खुद ही कहते हमलोग तो सबसे करते प्यार ।
इंसानी आबादी इतनी उसकी नहीं है रोक-थाम,
पशुओं की बढ़ी आबादी तो लेने लगे इंतकाम ।
राह और भी मिल जाती छोड़ के नृशंस काम,
टीकाकरण करके संख्या की करते रोक-थाम ।
मानव संख्या नियंत्रण को औषधि की भरमार,
नहीं कोई कानून जो इसे रोकने को हो तैयार ।
अहिंसक पशुओं की हत्या का ये कैसा कानून,
उन्हें इस तरह मिटाने का सर पर चढ़ा जुनून ।
देश में समस्याओं की लम्बी-चौड़ी फेहरिस्त,
जनसँख्या से जुडी है हर समस्या की क़िस्त ।
फिर खुद के नियंत्रण पर क्यों नहीं देते ध्यान,
अपना ज्ञान परिभाषित कर मार रहे बेजुबान ।
विजय कुमार सिंह
नील गायों के शिकार से प्रभावित बेहतरीन रचना. इंसान की स्वार्थी प्रवर्ति पर सटीक व्यंग करती है.
Thank you very much sir.
वर्तमान परिपेक्ष्य में सुन्दर कटाक्ष …… इस से संबंधित मेरी रचना ” मुर्गो की सभा” नजर करे !!
Beautifully written.
Thank you sir.
बहुत ही खुबसूरत……..और सार्थक रचना!
Thanks for like.