देश मेरे में नाम पाने की होड़ उठी,
मेरे धर्म का, मेरी जात का,
मेरे शहर-गांव का, मेरा रिश्तेदार,
सोच लोगो की एक दूसरे से जुडी,
इसने क्या किया, इसने कब किया,
ये अच्छा था, ये बुरा था,
बातों ही बातों में बात आगे बड़ी,
हुई चैनल्स पे बहस, लगे नारे,
सोसल साइट पर दी एक दूसरे को पटखनी,
धीरे-धीरे अनशन के लिए भीड़ जुडी,
कितने बेवजह घर जले, कितने बेक़सूर लोग मरे,
कितने अनाथ हुऐ, कितनो के सुहाग उजड़े,
पूछती है हमसे इमारते, तो कही सड़के,
दर्दनाक जब ये घटना घटी,
झूठे दिखावे, लोक प्रसिद्धि,
तरीका कोई भी बस पैसा हो,
कोई मरता है तो मरे,
हर किसी को खुद की पड़ी,
देश मेरे में नाम पाने की होड़ उठी,
बहुत अच्छे मनी …………..!!
धन्यवाद निवातियाँ जी
मनिंदर इस रचना में थोड़ा confusion है. नाम पाने की होड़ होना चाहिए.
धन्यवाद शिशिर जी आपने मुझे अपना कीमती सुझाव दिया मैंने चेंज किया है आप बताये की अब ठीक है या उसमे कुछ सुधार की जरूरत है | आगे भी ऐसे मार्गदर्शन करते रहे तहे दिल से आप का धन्यवाद
कमाल है मनी जी….
THANKS CM SHARMA JI