कभी तन्हा, कभी खामोश,
कभी पहेलियाँ सुलझाते अल्फाज़ मेरे,
कभी माँ के आँचल, कभी पिता की झिड़क,
कभी अपनों के प्यार को जिन्दा रखते अल्फाज़ मेरे,
कभी अमीरी-गरीबी के उतार चढ़ाव,
कभी गुजरते हर पल का रखते हिसाब रखते अल्फाज़ मेरे,
कभी रिश्तों की भूख, कभी मसकत दो टुक के लिए,
कभी अपने और गैरो का फर्क समझाते अल्फाज़ मेरे,
कभी उम्मीदों की सुबह, कभी ख्वाहिशो का टूटना,
जिंदगी के हर लम्हे को उकेरते “मनी” के जेहन पर अल्फाज़ मेरे
Manindar , ji alfajo ki khubsurati se aapne ruuprekhha prastut ki….aapko mubarak!
अलफ़ाज़ मन की भावनाओं को प्रकट करने का जरिया तो हमेशा से हैं. इसके माध्यम से मनिंदर आपने अपने मनोभावों का सुंदर चित्रण इस रचना में किया है.