I composed this poem against the Female Foeticide in India…
“मुझे गर्भ में ही मत मारो, मुझे इस संसार में आने दो माँ।
मै भी तो आपके शरीर का हिस्सा हूँ,
मुझे ऐसे ही न कट जाने दो माँ।
बेटी हूँ तो क्या हुआ अपना नाम बनाऊँगी,
बेटे की तरह मै भी आपका नाम रोशन करके दिखाऊँगी।
मुझे बाहर आने दो, अपना प्यार पाने दो माँ,
यूँ ही अपने अंश को न कट जाने दो माँ।
तेरे आँचल को मै ख़ुशियों से महकाऊँगी,
बेटे की तरह मै भी तेरे दूध का क़र्ज़ चुकाऊँगी माँ।
डॉक्टर इंजीनियर या ऑफिसर बनके दिखाऊँगी,
अपने परिवार के सम्मान को आगे बढाऊँगी माँ।
अपनी ममता की छाव् का सुख मुझको भी पाने दो,
तेरे प्यार की शीतलता में मुझको भी आने दो माँ।
मुझे गर्भ में ही मत मारो, मुझे इस संसार में आने दो माँ।”
सूंदर भावयुक्त रचना…………
आपका बहुत बहुत आभार।… सर!
स्वाति जी आपने सच्चाइ को बहुत ही सुंदर रूप से दिखाया है बधाई हो
आपका बहुत बहुत धन्यवाद।.सर!
स्वाति mam, बहुत ही खुबसूरत रचना, mam मै अपना एक observation लिखना चाहता हूँ, वास्तव में माँ शायद कभी अपने बच्चे को , चाहे वह लड़का हो या लड़की नहीं मरना चाहती। पर ससुराल पक्ष में सास की लड़के और खानदान के वरिश की अति महत्वाकांक्षा तथा सामाजिक मजबूरियाँ इसके लिए उत्तर दाई है।
आपका बहुत बहुत धन्यवाद सर।। सर मैं आपके विचारों से पूरी तरह से सहमत हूँ।माँ के लिए अपनी दोनों ही संतान अनमोल होती हैं। लेकिन कई बार समाज के दबाब में उसको यह कुकृत्य करना पड़ता है।