Homeअज्ञात कविकंचे- निर्मल कुमार पाण्डेय कंचे- निर्मल कुमार पाण्डेय [email protected] अज्ञात कवि 27/06/2016 2 Comments सप्तरंगी स्वप्नदर्शी बहुरंगे उछलते बार बार टकराते, लड़ते ये कंचे कहते उछलो टकरावों और टकराते रहो जब तक उर्जा है तुम में *** अच्छे हैं कंचे ही हमसे टकराते तो हैं… हम तो तनिक प्रतिरोध से ही धराशायी हो जाते हैं. —-निर्मल कुमार पाण्डेय Tweet Pin It Related Posts गुलशन को अब न उजाड़े हम – अनु महेश्वरी अनुत्तरित प्रश्न बचपन About The Author [email protected] बलिया में जन्मा, इलाहाबाद, बनारस और दिल्ली में पढ़ा-बढ़ा, पेशा है इतिहास कुरेदना और शौक साहित्य-संस्कृति में लोटना है. 2 Comments Shishir "Madhukar" 27/06/2016 अच्छी रचना……………….. Reply निवातियाँ डी. के. 27/06/2016 सुन्दर अभिव्यक्ति ………….. Reply Leave a Reply Cancel reply Save my name, email, and website in this browser for the next time I comment.
अच्छी रचना………………..
सुन्दर अभिव्यक्ति …………..