मुझे स्वर दो, मैं बोलूंगा,
हालात के बंद किये ताले को
साहस की युक्ति से खोलूंगा
मुझे स्वर दो, मैं बोलूंगा ।
आरक्षण की काली रात को,
स्तब्ध आँखों से देखा है,
फटे-चिटे आतंरिक-वस्त्रों को,
सबने दूरदर्शन पर देखा है,
चार दिन है जिस्म की आयु,
यह कुदरत का लेखा है,
आत्मा के अमरत्व को मैंने,
तिल-तिल मरते देखा है ।
मुझे स्वर दो, मैं बोलूंगा…..
उस बच्चे के दर्द को देखा,
जो माँ को लुटते न देख सका,
उस भाभी के दर्द को देखा,
जो नन्दों की आबरू न बचा सकी,
नारी के प्रत्येक रूप को,
कलुषित होते देखा है ।
मुझे स्वर दो, मैं बोलूंगा…… ।
भयभीत, पीड़ित जन-समूह को देखा,
जो जख्म अपना न दिखा सके,
अपराधियों को दण्डित करने की,
खुद में हिम्मत न जुटा सके,
फर्ज निभानेवाले किरदारों को,
ओहदा बचाते हुए देखा है ।
मुझे स्वर दो, मैं बोलूंगा…… ।
गौण हो गया मेरा स्वर,
यह देखकर जब मैं चीखा था,
दूर कहीं काली रात में,
क्रन्दन करता कई साया दीखा था,
पच्छियों का कोलाहल-बेचैनी,
जटायु युद्ध सरीखा था ।
मुझे स्वर दो, मैं बोलूंगा,
हालात के बंद किये ताले को
साहस की युक्ति से खोलूंगा
मुझे स्वर दो, मैं बोलूंगा ।
विजय कुमार सिंह
विजय यदि यह रचना आपने मुरथल काण्ड पर लिखी है तो कृपया मेरी मेरी रचना “मुरथल में नंगा नाच” भी अवश्य पढ़े और अपनी प्रतिक्रिया भेंजे. आपकी रचना भी दिल में बैचेनी पैदा करती है.
“मुरथल में नंगा नाच” पढ़ा, आपने भावों को बेहतरीन तरीके से पिरोया है, ऐसे मसलों पर लिखना राइटर की जिम्मेदारी बनती है अतः हमें जिम्मेदारी निभाते रहना होगा. धन्यवाद सर.
विजय रचना पढ़ने और सराहने के लिए हृदय से आभार. मैं आपकी जिम्मेदारी निभाने वाली बात से पूर्णतया सहमत हूँ.
बहुत ही सुंदर रचना है…सर।
मेरा प्रयास समाज के गिरते स्तर को बेहतर बनने में अपना योगदान करना होता है, संभव माध्यम के द्वारा । आपको रचना पसंद आई उसके लिए बहोत-बहोत धन्यवाद.
“मुझे गर्भ में मत मारो।”
मुझे गर्भ में मत मारो।मेरे और आपके प्रयास एक जैसे भावों को दर्शाते हैं, अच्छी रचना है हमारे भावों का कुछ तो प्रभाव पढ़नेवाले पर पड़ेगा ही.
Thanks a lot.
Awesome, eye opening lines, we salute u sir for writing against crime
Thanks for reading and supporting.
आपने सच कहा विजय जी हमारे लिखने का प्रभाव औरो पर जरुर होगा किंतु साथ ही हमारा कर्तव्य भी ये है की हम जो प्रेरणा औरो को दे हम भी लिखने के साथ उस पर स्वयं भी अमल करे तभी सोने पर सोहागा होगा बात यदि रचना की है तो आपकी रचना लाजावाब है
मैं अपने जीवन में सत्य पर ही चलता हूँ, कष्टों का लिबास पहनकर सफर पर निकलता हूँ ।
अपनी ही भावनाओं को कविता में पिरोता हूँ, इन्हीं संस्कारों के साथ जीवन भी संजोता हूँ ।
बहुत खुबसूरत रचना………!
परिस्थितियों का जीवंत चित्रण
Thanks for reading.
विजय जी बहुत सुन्दर रचना
Thank you very much for reading.
बहुत बढ़िया विजय जी
पसंद के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद.