लाइन में खड़ा रहा भूखा प्यासा,
बैंक में काम करवाना नही आसां।
घंटों इंतज़ार करना,
बेइंतहा सब्र करना।
आखिर ख़त्म हुआ मेरा इंतजार,
बारी आ ही गई करके इंतजार।
लेकिन ये क्या,मेहनत व्यर्थ हो गई,
बारी आते ही,काउंटर बंद कर गई।
सब्र का बाँध टूट गया मेरा,
कह दिया,दिखा दूंगा कद तेरा।
ऊपर वालों से मिल कर शिकायत करुँगा,
आज तो काम करवा कर जाऊँगा।
फिर अचानक टूटा मेरा सयंम,
काम नही आया, जब नियम।
परिसर में मेरी आवाज़ रही थी गूंज,
उस समय,कुछ भी नही रहा था सूंझ।
आखिर इस सरकारी तंत्र ने हार मान ली थी,
काम तो हुआ,मगर ये जीत भी मेरी हार थी।
टूट गया था मैं उस समय,थका हुआ,असहाय,
सोचा न्याय होगा, अब तो ईश्वर के निकाय।
~रवि यादव
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बहुधा ऐसा होता है………..! आपने कलम में पिरोया अच्छा लगा!