में हु गुड़िया तेरी बाबा , हर रोज़ तुझे बतलाऊँगी
हर बार मरूंगी में तन से , मन से जी कर दिखलाऊँगी
मेरे मन पर , तेरी सादगी का जो निशा बना,
मैं उसी निशा से खुद को पारस करती जाऊँगी
मैं हूँ गुड़िया तेरी बाबा …………………………..
तूने जो मुझको सीखा दिया , मैंने इस मन में छीपा लिया
तूने जो मुझसे कहा नहीं , वो भी इस मन में बसा लिया
मैं हूँ गुड़िया तेरी बाबा ……………………………….
तेरे साये से जो मिला मुझे , उसका तोह कोई मोल नहीं
जो आंसू गीरा तेरी आँखों से , वो तो किसी को दिखा नहीं
मैं हूँ गुड़िया तेरी बाबा ………………………………………
मेरी शादी के दिन , तेरी आँखों में भी सपने थे
इस रंग बिरंगी दुनिया में , कुछ ही तोह बस अपने थे
मैं हूँ गुड़िया तेरी बाबा ………………………………………
मैं हर बार जियु तेरे लिए , उस रब से मैंने मांग लिया
मेरा खुदा , रब भी तू , बस इस दिल ने मान लिया
मैं हूँ गुड़िया तेरी बाबा……………………………..
एक बेटी की पिता के प्रति श्रद्धा की सुंदर कृति. पर रचना थोड़ा सुधार मांगती है.
कृपया मुझे बताएं , किस जगह सुधार करूं , ताकि अपने पिता को समर्पित ये कविता सबके दिल को छू जाये …….
आप के भावनाएं बहुत अच्छी है…हाँ मैंने आप के ही शब्द कुछ इस तरह से जोड़े हैं…उसमें मैंने कुछ जादा चेंज नहीं किया है…
में हु गुड़िया तेरी बाबा , तुझ जैसी बन जाऊंगी…
मर जाऊं तन से चाहे मैं, मन से जी कर दिखलाऊँगी…
मन मेरे पे असर तेरा जो…उसको ना विस्राऊँगी….
तेरे ही संस्कारों से मैं खुद को पारस करती जाऊंगी….
Ramanan I have reworked your poem as under. Please go through it tell how do you like it now.
मैं लाडो गुड़िया हूँ बाबा , हर रोज़ तुम्हे बतलाऊँगी
हार ना मानूंगी तन से , मन से जी कर दिखलाऊँगी
सादगी से जीने की जो भी, तुमसे मुझको शिक्षा दी है
मैं उसी कला से खुद को हरदम, पारस करती जाऊँगी
मैं लाडो गुड़िया हूँ बाबा ……………………………..
तुमने मुझको जो भी सीख दी, मैंने मन में छिपा लिया
जो भी मुंह से कहा नहीं , वो भी व्यवहार में बसा लिया
मैं लाडो गुड़िया हूँ बाबा , …………………………
तुम्हारे साये से जो मिला मुझे , ऐसा तो कोई खोल नहीं
आँखों से तुमने जो गिराए मोती, वैसा कुछ अनमोल नहीं
मैं लाडो गुड़िया हूँ बाबा …………………………..
मेरी डोली उठने के दिन , आँखों में जितने भी सपने थे
वो सारे पूरे हो जल्दी ,यह चाह लिए बस तुम अपने थे
मैं लाडो गुड़िया हूँ बाबा ,…………………………..
हर बार खिलूँ मैं तेरे चमन में, उस रब से मेरी यही पुकार
पिता जो देता है बेटी को, वैसा तो नहीं कोई प्यार दुलार
मैं लाडो गुड़िया हूँ बाबा ,…………………………..
Tamanna sorry your name’s spelling has been incorrectly typed.
thanks its awesome …..
तमन्ना जी आपकी दूसरी ही पंक्ति राह से भटक गयी थी…..शब्द उपलब्ध है पर सब इधर उधर।।। शिशिर जी ने क्या गजब पिरोया है वाह!