सत्या को जान कर भी
मैं अंजान फिरा करता हूँ
विपतियों की माला को, मैं
अपने साथ लिए जीता हूँ
पानी के फर्स पर मैं
कागज की नाव लिए फिरता हूँ
एक पल में ही टूट जाएगी
मेरे ख्वाबो की बुनी माला
फिर भी तूफानों में मैं
एक दिप लिए फिरता हूँ
अंधकार रात्री में जब भी, मैं
प्रकाश लिए चाँद को देखा करता हूँ
अपनी एक पहचान बनाने को
सत्या की ऊर्जा साथ लिए फिरता हूँ।
संदीप कुमार सिंह
8471910640
बहुत सुन्दर….
धन्यवाद ,,,,,,,
संदीप जी आप बहुत उम्दा लिखते है, चाहे तो मेरे whatsapp 9532855181 पर भी जुड़ सकते है
ji jarur judana chahenge,,, mera whatsaap thoda problm de raha hai, aap muje join kar lijiye,8471910640
pratikriya ke liye dhanyawad surendra ji….