ये जीवन है तेरा , इस जीवन पर है क़र्ज़ तेरा
मुझे जरूरत नहीं रब की , तू जो है रब भी मेरा
मेरी माँ के आँचल से चलती है जो मस्त हवा ,
उस आँचल के में हूँ सदके , जिस में है भरा सुकून बड़ा
उन् प्यार भरे शब्दों को सुन कर , में तोह बस जी लेती हूँ
वरना इस जीवन में जीने को , दुनिया में है दर्द बड़ा
उसको हर पल फ़िक्र मेरा , मेरे जीवन में खुशियों का
वैसे तोह उसके मन में , छुपा हुआ है दर्द बड़ा
में अब सायानी हूँ ,माँ , ये कह कह कर ,में चिलाती थी
बस कर माँ , में बड़ी हुई , कह कर रॉब जताती थी
वो बस हंस कर, मुझको , पगली कह कर बुला थी
तू है भोली मेरी बच्ची , मुझको ये कह कर सहलाती थी
ये सब बातें उस पल की है जब में छोटी बची थी
अब समझी हूँ में माँ , तू क्यों मुझ पर मुस्काती थी
माँ बनकर मैंने समझा ,सब माँ एक जैसी होती है
खुद तो दुःख सह लेती है ,पर मुंह से कुछ ना कहती है
मुझको नहीं चाहिए , धन दौलत , ये महल कीमती पत्थर
मुझको चाहिए बस तू ही , तेरा आँचल और वो बचपन का घर
माँ की उपसना में जो लिखा जाये कम है,पर माँ ही नहीं माँ-बाप दोंनो को इस श्रेणी में बराबर का हक मिलना चाहिए…..!
रहने दो एहसान इतना हो गया
माँ पिता के ऋण से उऋण हो गया
छंद रुपये हाथ पर धर
तू बेगाना हो गया
रहने दो ……
अंक में माँ के मिली जो तुमको ममता
साये में माँ बाप के बढ़ी तेरी क्षमता
रोटी का दो टूकड़ा खिलाकर
ताना पे ताना दे गय़ा
रहने दो …..
सुख मिलेगा सोचकर हर्षित हुआ
क्या पता था दर्द में दिल व्यथित हुआ
दे पता वृद्धाश्रम का
हाय लाल खो गया
रहने दे एहसान इतना हो गया!
mein aap ki baat se sehmat hoon magar jis waqt ye shabdo ko likha gaya meri manovriti sirf maa ke baarey mein souch rahi thi , iska matlabh ye naahi mein pita per nahi likhti , kuch waqt baad aap meri pita per likhi kavita bhi padenge,
thanks for the comment
तमन्नाजी….बिलकुल सोफिसदि आप सत्य कहती हैं…माँ का स्थान सबसे ऊपर है…जो बोल जाए अप्रयाप्त है….वैसे भी हम तभी समझते बात जब खुद उसी हालात में होते….
बहुत अच्छा लिखती है आप मुझे सबसे अच्छा लगा कविता का नाम जो “मेरा भगवान” जिसने कविता मि चार चांद लग दियेl
thanks for the appreciation
heart touching words……very nice