यादें
बचपन की यादें
आती हैं चली जाती हैं
पर इस कोरे दिल पर
अमिट छाप छोड़ जाती हैं ।
बचपन में यूं खुले-धड़ल्ले
घुमने जाना आसमां नीचे
हरे भरे मैदानों में
चारों तरफ फै ली हरियाली
फ ले फू ल गुलिस्तानों में
आज भी फि र क्यों नही है ,
खेतों और खलिहानों में
जो सपनों में आती है ।
पर इस कोरे दिल पर
अमिट छाप छोड़ जाती हैं ।
बचपन का वो दायरा
न छोटा न कोई बड़ा
सबको समझना एक समान
चाचा ताऊ या हो दादा
फि र क्यों पहना अह्म का चोला
ईश्वर ने हमको बड़ा किया
सोच कर यह बात दिल में
सनसनी सी दौड़ जाती है ।
पर इस कोरे दिल पर
अमिट छाप छोड़ जाती हैं ।
बहुत सुन्दर भाव भरे हैं…बचपन के….
मुझे मेरा बचपन याद आ गया ……… अच्छी रचना है
बचपन सबकों प्यारा होता है, पता ही चला हम कब बड़े हो गए……….अति सुंदर जनाब!