शाम तो ढल गयी साकी तेरे पास आना है,
अपनी आगोश में ले ले वादा तो निभाना है ।
दिन तो ढल जाता है, रात है कि जाती नहीं,
तेरे पास आने का बस बाकी यही बहाना है ।
साथ निभानेवाला साथी तो बिछड़ गया,
अब उसकी याद में ही जीवन बिताना है ।
लोग कहते हैं कि मैं पीकर झूमता हूँ,
नहीं पीनेवालों का मुझपर ही निशाना है ।
तुझे दोस्त बनाना भी मजबूरी हो गयी,
क्या करें हम भी जब दुश्मन जमाना है ।
विजय कुमार सिंह
अति सुंदर……………………. ।
बहुत बहुत धन्यवाद !
क्या भावों को पिरोया है, विजय जी आपने……!
!
एक बात और विजय जी, आप अपना प्रतिउत्तर यही देते तो सभी को दृष्टव्य होता।
I am unable to reply through this because I am getting some error while replying someone.
Please understand.
Thanks,
Vijay Kumar Singh
सुरेन्द्र जी मैंने कई बार कोशिश की जवाब देने की लेकिन सिस्टम एरर के कारण जवाब नहीं दे सका । अभी लगता है की प्रयास सफल हो रहा है।
विजय जी कभी कभी error आता है और कभी कभी नहीं लेता है, आप जो भी लिखना चाहे रिफ्रेश करके दुबारा लिखे, ले लेगा ……
बहुत अच्छा, शख्सियत खप गयी तेरी बस एक कफ़न कमाने में…..(दो गज जमीं और एक कफ़न)
बहुत सुन्दर….
बहुत बहुत धन्यवाद !
very nice write………..
राहें उल्फ़त की – बहुत अच्छा, एक पुराना गीत याद आया आपकी रचना को पढ़कर, “इश्क एहसास है इसे रूह से महसूस करो…….”