सच तो बस इतना था
तुम आई, ठहरी,
खुद का वास्ता दिया
अनचाहे मन से लौट गयी ।
सच तो बस इतना है
मैं तलाश में आया हूँ
तुम्हे देख रहा हूँ
तुम खुद में भी नहीं दिख रही हो
मैं लौटने को विवश हूँ ।
सच तो बस इतना होगा
हम फिर सफर पर निकलेंगे
न तुम खुद का वास्ता दोगी
न मैं तुममे तुम्हे खोजूंगा
न झिझक होगी न भय होगा
तुम मुझमे रहोगी मैं तुममे रहूँगा
बस यही सच होगा ।
विजय कुमार सिंह
किसी की यादों को सदा संजो के रखने का एहसास कराती सुंदर प्रेम रचना
Bahut khoob……
Bahut badhiya…