आजादी का शतक न बीता,
हम हो गए कंगाल ।
अहिंसा से आजादी छीनी,
नहीं बिछाया जाल ।
ईमान ख़रीदा, अस्मत लूटी,
खुद धरती के लाल ।
षड़यंत्र, फरेब से ओहदा पाया,
देखो इनका कमाल ।
उनका क्या जो शहीद हो गए,
तस्वीरों में गुलाल ।
शहीदों पर नतमस्तक होकर,
बदली अपनी चाल ।
सत्ता के गलियारे में पहुंचे,
खादी बन गई ढाल ।
समाज पर सितम ढाते हैं,
बांका हो न बाल ।
विजय कुमार सिंह
सत्यपरक रचना……………………
सही कहते हैं आप…बहुत सुन्दर कटाक्ष…
व्यवस्था तंत्र पर गहरी चोट करता सुन्दर कटाक्ष ………!!
बहुत खूब भाई ……
बहुत सुन्दर रचना विजय जी
अच्छी रचना है जो यथार्थ दर्शाती है…….!